उच्च न्यायालय ने दलबदल विरोधी कानून के तहत मुकुल रॉय की पश्चिम बंगाल विधानसभा की सदस्यता रद्द की
अविनाश
- 13 Nov 2025, 10:06 PM
- Updated: 10:06 PM
कोलकाता, 13 नवंबर (भाषा) कलकत्ता उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को वरिष्ठ नेता मुकुल रॉय को 2021 के चुनावों में भाजपा के टिकट पर चुने जाने के बाद सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के लिए दल-बदल विरोधी कानून के तहत पश्चिम बंगाल विधानसभा के सदस्य के रूप में अयोग्य घोषित कर दिया।
अदालत ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले को ‘‘विकृत’’ करार दिया, जिन्होंने दल-बदल विरोधी कानून के तहत रॉय को विधायक के रूप में अयोग्य ठहराने की याचिका पर अपने फैसले में कहा था कि वह भाजपा के विधायक हैं।
इसने लोक लेखा समिति (पीएसी) के अध्यक्ष के रूप में रॉय के नामांकन को भी रद्द कर दिया क्योंकि सदन की उनकी सदस्यता 11 जून, 2021 से समाप्त हो गई।
न्यायमूर्ति देबांग्शु बसाक और न्यायमूर्ति मोहम्मद शब्बार रशीदी की खंडपीठ ने कहा कि उसे विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी के आठ जून, 2022 के आदेश को रद्द करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है, जिसके द्वारा उन्होंने शुभेंदु अधिकारी की याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें रॉय को अयोग्य ठहराने का अनुरोध किया गया था।
कलकत्ता उच्च न्यायालय के वकीलों ने दावा किया कि भारतीय न्यायशास्त्र के इतिहास में पहली बार किसी उच्च न्यायालय ने निर्वाचित विधायक को दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य ठहराने के लिए अपने संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल किया है।
रॉय मई 2021 में कृष्णानगर उत्तर सीट से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के टिकट पर सदन के लिए चुने गए थे, लेकिन उसी साल जून में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तृणमूल कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी की मौजूदगी में वह विधायक का दर्जा बरकरार रखते हुए राज्य के सत्तारूढ़ दल में शामिल हो गए थे।
अधिकारियों ने बताया कि इस फैसले से कृष्णानगर उत्तर सीट रिक्त हो गई है, लेकिन इस सीट पर उपचुनाव की संभावना नहीं है, क्योंकि राज्य विधानसभा के चुनाव अगले साल की शुरुआत में होने हैं।
खंडपीठ ने पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी और भाजपा विधायक अंबिका रॉय की याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए रॉय को राज्य विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया।
अधिकारी के वकील बिलवादल बनर्जी ने कहा, ‘‘देश में यह पहली बार है कि किसी उच्च न्यायालय ने दल-बदल विरोधी कानून (जो 1985 में संविधान के 52वें संशोधन द्वारा लागू किया गया था) के तहत किसी विधायक को अयोग्य ठहराने के लिए अपनी संवैधानिक शक्तियों का इस्तेमाल किया है। अदालत को यह फैसला सुनाने में भले ही कुछ समय लगा हो। लेकिन, यह सत्य और धर्म की विजय है।’’
अधिकारी ने विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी के उस फैसले को चुनौती देते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी जिसमें रॉय को दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य ठहराने के अनुरोध संबंधी उनकी अर्जी खारिज कर दी गई थी।
अधिकारी ने आरोप लगाया था कि भाजपा के टिकट पर निर्वाचित होने के बाद रॉय सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये।
अदालत ने लोक लेखा समिति (पीएसी) के अध्यक्ष के रूप में रॉय के नामांकन को भी रद्द कर दिया। जुलाई 2011 में, रॉय को विधानसभा की पीएसी का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। यह पद पारंपरिक रूप से राज्य के विपक्षी दल के सदस्य के पास होता है।
अंबिका रॉय ने उच्च न्यायालय में एक अलग याचिका दायर कर मुकुल रॉय की पीएसी अध्यक्ष पद पर नियुक्ति को इस आधार पर चुनौती दी थी कि तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने के बाद पार्टी ने उन्हें इस पद के लिए कभी नामित नहीं किया था।
अधिकारी ने इस फैसले को ‘‘संविधान की जीत’’ और इसे कमजोर करने की कोशिश करने वालों की हार बताया।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं पिछले चार साल से इसके खिलाफ लड़ रहा हूं। वर्ष 2011 से, जब से ममता बनर्जी सत्ता में आई हैं, तृणमूल कांग्रेस ने कई विपक्षी विधायकों का दल-बदल करवाया है। भाजपा ने आखिरकार वह कर दिखाया जो कोई और विपक्षी दल नहीं कर पाया।’’
अधिकारी ने कहा, ‘‘यह मेरी लड़ाई का सिर्फ पहला चरण है। हाल में इसी तरह पाला बदलने वाले तीन अन्य विधायकों - तन्मय घोष, तापसी मंडल और सुमन कांजीलाल - को तैयार रहना चाहिए क्योंकि अब मैं उनके पीछे पड़ूंगा।’’
अधिकारी ने रॉय पर अध्यक्ष के प्रारंभिक फैसले पर भी उंगली उठाई और उनकी निष्पक्षता पर सवाल उठाया।
अधिकारी के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए तृणमूल कांग्रेस के प्रवक्ता अरूप चक्रवर्ती ने आरोप लगाया कि भाजपा नेता ‘‘राजनीतिक पाखंड’’ का सहारा ले रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘शुभेंदु के अपने परिवार में भी दलबदलू मौजूद हैं। वरना, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के टिकट पर सांसद चुने जाने के बाद, शुभेंदु के पिता शिशिर अधिकारी और उनके भाई दिव्येंदु टीएमसी व्हिप की अवहेलना करते हुए भाजपा की रैलियों में क्यों जाते और संसद में भाजपा के पक्ष में वोट क्यों देते?’’
चक्रवर्ती ने कहा, ‘‘आपको क्या लगता है कि भाजपा ने गोवा और महाराष्ट्र में सत्ता कैसे हासिल की? अच्छा होता अगर न्यायपालिका ऐसे सभी मामलों में वही भूमिका निभाती, जैसा उसने मुकुल रॉय के मामले में निभाई।’’
अयोग्य ठहराये जाने के अनुरोध संबंधी अर्जी 17 जून, 2021 को अध्यक्ष के समक्ष दायर की गई थी, जिसमें मुकुल रॉय के 11 जून, 2021 को दल-बदल करने का आरोप लगाया गया था।
अदालत ने बृहस्पतिवार को दिए अपने फैसले में कहा कि अध्यक्ष ने अर्जी पर फैसला सुनाते समय कानून का गलत इस्तेमाल किया है और 8 जून, 2022 के अपने फैसले पर पहुंचने में तथ्यात्मक स्थिति का गलत आकलन किया है, जिसमें उन्होंने फिर से कहा कि रॉय भाजपा के विधायक हैं।
उच्च न्यायालय ने कहा कि मुकुल रॉय 2021 के विधानसभा चुनावों में भाजपा के टिकट पर कृष्णानगर उत्तर निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा के सदस्य चुने गए थे लेकिन 11 जून, 2021 को संवाददाता सम्मेलन में इसकी घोषणा करके टीएमसी में शामिल हो गए।
इस प्रेस वार्ता में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी शामिल हुई थीं।
उनके टीएमसी में शामिल होने की खबर सत्तारूढ़ पार्टी के आधिकारिक ‘एक्स’ हैंडल पर भी प्रसारित की गई।
अदालत ने कहा कि अंबिका रॉय ने अध्यक्ष के समक्ष इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य और अन्य सामग्री पेश की थी।
पीठ ने कहा कि दूसरे रिट याचिकाकर्ता ने अध्यक्ष के समक्ष उपलब्ध दलीलों के माध्यम से यह स्थापित किया है कि मुकुल रॉय टीएमसी द्वारा आयोजित संवाददाता सम्मेलन में मौजूद थे।
इसने यह भी उल्लेख किया कि मुकुल रॉय ने इस बात से इनकार नहीं किया कि यह कार्यक्रम टीएमसी द्वारा आयोजित किया गया था और वह वहां मौजूद थे।
विधानसभा अध्यक्ष की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने अदालत के समक्ष दलील दी कि उनके खिलाफ पक्षपात के आरोप निराधार हैं।
उन्होंने पीठ के समक्ष दावा किया कि अंबिका रॉय की याचिका पश्चिम बंगाल विधानसभा (दल-बदल के आधार पर अयोग्यता) नियम, 1986 के प्रावधानों के तहत दोषपूर्ण है और इसे खारिज किया जाना चाहिए।
उल्लेखनीय है कि रॉय ने एक समय कथित तौर पर इसी कानून का अपने राजनीतिक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया था।
भाषा
देवेंद्र