दिल्ली की वायु गुणवत्ता बिगड़ने से कैंसर और श्वसन संबंधी जोखिम बढ़ने की विशेषज्ञों ने दी चेतावनी
नोमान नरेश
- 11 Nov 2025, 06:52 PM
- Updated: 06:52 PM
नयी दिल्ली, 11 नवंबर (भाषा) दिल्ली की बिगड़ती वायु गुणवत्ता ने स्वास्थ्य विशेषज्ञों को प्रदूषित हवा के लगातार संपर्क में रहने के दूरगामी और दीर्घकालिक स्वास्थ्य परिणामों को लेकर चिंतित कर दिया है। कैंसर के बढ़ते खतरे से लेकर शरीर की प्रतिरोधक क्षमता के कमज़ोर होने तक, वायु प्रदूषण का असर श्वसन संबंधी बीमारियों से कहीं आगे तक फैला हुआ है।
‘स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2025’ रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि भारत में 2023 में जहरीली हवा के कारण 20 लाख से अधिक मौतें हुईं। दक्षिण एशिया में पीएम 2.5 की सांद्रता दुनिया भर में सबसे अधिक है, जिसे विशेषज्ञ गहराते पर्यावरणीय और मानवीय संकट के रूप में देखते हैं।
पर्यावरण विशेषज्ञों और नीतिनिर्माताओं का मानना है कि भारत में प्रदूषण कई कारणों से होता है। इसमें घरों में जलाए जाने वाले ठोस ईंधन से पीएम2.5 लगभग 30 प्रतिशत योगदान देता है। इसके अलावा गाड़ियां, कोयला आधारित बिजली संयंत्र, कारखानों से निकलने वाला धुआं और खेतों में पराली जलाना भी प्रदूषण बढ़ाते हैं।
उन्होंने कहा कि दिल्ली जैसे घनी आबादी वाले शहरों में गाड़ियों की भीड़ और निर्माण कार्य से उत्पन्न धूल के कारण जोखिम बढ़ जाता है।
रोहिणी स्थित जयपुर गोल्डन अस्पताल में श्वसन चिकित्सा, निद्रा एवं इंटरवेंशनल पल्मोनोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. राकेश के. चावला ने कहा कि दिल्ली भारत में वायु प्रदूषण की आपात स्थिति का सबसे गंभीर उदाहरण है।
उन्होंने बताया कि हर सर्दी में पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा से लगभग 10 गुना ज़्यादा हो जाता है। उन्होंने कहा "दिवाली और पराली जलाने के बाद शहर स्थिर और ठंडी हवा की परत के नीचे ढक जाता है, जिसमें विषैले कण होते हैं।
डॉ चावला ने कहा, "यह सिर्फ मौसमी असुविधा नहीं है; यह फेफड़ों पर लगातार हमला है जो रोग प्रतिरोधक क्षमता को कमज़ोर करता है, अस्थमा को बदतर बनाता है और फेफड़ों की पुरानी बीमारियों को बढ़ाता है। स्वच्छ हवा को एक बुनियादी अधिकार माना जाना चाहिए, न कि मौसम या हवा पर निर्भर एक विलासिता।"
उन्होंने कहा कि अल्पकालिक उपाय वास्तविक राहत देने में विफल रहे हैं। चिकित्सक ने कहा "सम-विषम यातायात योजनाओं से लेकर क्लाउड-सीडिंग प्रयोगों तक, ये प्रतिक्रियात्मक, प्रतीकात्मक उपाय हैं।"
डॉ चावला ने कहा कि दिल्ली को उत्सर्जन मानदंडों के सतत प्रवर्तन, इलेक्ट्रिक सार्वजनिक परिवहन में निवेश, तथा निर्माण एवं अपशिष्ट जलाने पर सख्त नियंत्रण की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि प्रणालीगत बदलाव के बिना, हर सर्दी में ऐसी ही स्थितियां उत्पन्न होंगी।
‘न्यूक्लियर मेडिसिन’ चिकित्सक और ‘स्कैन4हेल्थ’ की संस्थापक एवं सीईओ डॉ. चारु जोरा गोयल ने कहा कि सर्दियों और त्योहारों के मौसम की शुरुआत के साथ, वायु प्रदूषण सबसे शक्तिशाली कैंसरकारी तत्वों में से एक के रूप में उभरता है।
सर्दियों और त्योहारों के मौसम की शुरुआत के साथ ही वायु प्रदूषण कैंसर पैदा करने वाले सबसे शक्तिशाली कारणों में से एक बनकर उभरता है।
डॉ. गोयल ने कहा, "लंबे समय तक सूक्ष्म कणों, खासकर पीएम 2.5 और पीएम 10 के संपर्क में रहने से धूम्रपान न करने वालों में भी फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। ये प्रदूषक रक्तप्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं और मूत्राशय, स्तन और अन्य अंगों के कैंसर का कारण बन सकते हैं।"
इसी तरह की चिंता जताते हुए, सीके बिड़ला अस्पताल में सर्जिकल ऑन्कोलॉजी के निदेशक डॉ. मंदीप सिंह मल्होत्रा ने कहा, "वायु प्रदूषण अपने आप में कैंसरकारी है। अगर प्रदूषण से संबंधित कैंसर का मरीज़ लगातार प्रदूषित वातावरण में रहता है, तो इलाज कम प्रभावी हो जाता है। प्रदूषण कैंसर के मामलों को बढ़ाता है, इलाज की प्रभावशीलता को कम करता है, और पहले से ही कमज़ोर मरीज़ों को और कमज़ोर बना देता है।"
कैंसर के अलावा, जहरीली हवा से सांस लेने में समस्या, आंखों में जलन और एलर्जी भी बढ़ रही है।
‘स्टीडफ़ास्ट न्यूट्रिशन’ के संस्थापक अमन पुरी ने कहा कि अतिसूक्ष्म कण फेफड़ों में जमा हो जाते हैं, जिससे सूजन होती है और ऑक्सीजन की आपूर्ति सीमित हो जाती है। उन्होंने कहा कि एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर खाद्य पदार्थ, जड़ी-बूटियां और मसाले जैसे तुलसी, हल्दी और अदरक, सूजन और ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने में मदद कर सकते हैं।
जयपुर गोल्डन हॉस्पिटल के कंसल्टेंट डॉ. आदित्य के. चावला ने कहा "एक बार फेफड़ों की कार्यक्षमता खत्म हो जाने पर कोई भी दवा उसे बहाल नहीं कर सकती। एकमात्र प्रभावी बचाव रोकथाम है; धूम्रपान छोड़ें, उच्च प्रदूषण वाले दिनों में बाहर कम निकलें, और घर पर स्वच्छ ईंधन का उपयोग करें।"
भाषा नोमान