अदालत ने पतंजलि को अन्य च्यवनप्राश को ‘धोखा’ बताने वाला अपमानजनक विज्ञापन जारी करने से रोका
संतोष दिलीप
- 11 Nov 2025, 05:07 PM
- Updated: 05:07 PM
नयी दिल्ली, 11 नवंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने पतंजलि आयुर्वेद को वह विज्ञापन प्रसारित करने से रोक दिया है, जिसमें अन्य ‘च्यवनप्राश’ उत्पादों को ‘धोखा’ बताया गया था। अदालत ने पतंजलि आयुर्वेद को निर्देश दिया कि वह सभी इलेक्ट्रॉनिक, डिजिटल और प्रिंट माध्यमों से इस विज्ञापन को हटाए।
उच्च न्यायालय ने कहा कि विज्ञापन के माध्यम से यह संदेश देना कि केवल पतंजलि का ही उत्पाद असली है और अन्य भ्रामक हैं, ‘‘यह गलत है और सामान्य तौर च्यवनप्राश की सभी श्रेणी को बदनाम करता है।’’
न्यायमूर्ति तेजस करिया ने कहा कि कोई भी व्यक्ति यदि आयुर्वेदिक उत्पाद का निर्माण कानून और उसमें वर्णित विधान का पालन करते हुए करता है, तो उसके उत्पाद को भ्रामक बताकर बदनाम नहीं किया जा सकता, जब कानून उसे अच्छी और स्वीकार्य आयुर्वेदिक औषधि (वर्तमान मामले में ‘च्यवनप्राश’) मानता है।
उच्च न्यायालय ने योग गुरु रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद के ‘अपमानजनक’ विज्ञापन के खिलाफ रोक लगाने का अनुरोध करने वाली ‘डाबर इंडिया’ की याचिका पर अंतरिम आदेश दिया।
डाबर इंडिया, पतंजलि द्वारा जारी किए गए 25 सेकंड के उस विज्ञापन से व्यथित था, जिसका शीर्षक था, ‘‘51 जड़ी-बूटियां। एक सत्य। पतंजलि च्यवनप्राश।’’
पतंजलि के विज्ञापन में, एक महिला अपने बच्चे को च्यवनप्राश खिलाते हुए कहती है, ‘‘चलो धोखा खाओ। इसके बाद, रामदेव कहते हैं, ‘‘अधिकांश लोग च्यवनप्राश के नाम पर धोखा खा रहे हैं।’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि यह विज्ञापन एक आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन, यानी च्यवनप्राश से संबंधित है और योग एवं वैदिक प्रथाओं के जाने-माने विशेषज्ञ रामदेव द्वारा दिखाए गए इस विज्ञापन को देखने वाले एक आम दर्शक पर गहरा असर पड़ सकता है, जिसमें उन्होंने दावा किया है कि केवल उनका उत्पाद ही असली च्यवनप्राश है।
उच्च न्यायालय ने छह नवंबर को पारित अपने 37 पृष्ठों के आदेश में कहा, ‘‘ऐसा बयान स्वाभाविक रूप से दर्शकों को इसे सच मानने और च्यवनप्राश के अन्य ब्रांडों की उपेक्षा करने के लिए प्रेरित करेगा। विवादित विज्ञापन के समग्र प्रभाव का मूल्यांकन करते समय, विज्ञापनकर्ता के कद और प्रभाव जैसे कारकों पर विचार करना आवश्यक है।’’
इसमें आगे कहा गया है कि अपने लहजे और अंतर्निहित इरादे, दोनों से, विज्ञापन च्यवनप्राश उत्पादों की पूरी श्रेणी को बदनाम करने का प्रयास करता है।
अदालत ने कहा कि यदि पतंजलि उत्पादों की एक पूरी श्रृंखला का अपमान कर रहा है, तो उसके कृत्य का उसके प्रतिस्पर्धियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
हालांकि, पतंजलि ने विज्ञापन में विशेष रूप से डाबर उत्पाद को लक्षित नहीं किया है, लेकिन उसने अपने उत्पाद के अलावा हर अन्य च्यवनप्राश को ‘धोखा’ कहा है। ऐसे में च्यवनप्राश के बाजार में अग्रणी होने के नाते डाबर पर विज्ञापन की अपमानजनक प्रकृति से प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है।
अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया डाबर की ओर से अंतरिम रोक लगाए जाने मामला बनता है और सुविधा का संतुलन उसके पक्ष में और पतंजलि के विरुद्ध है।
यह मानते हुए कि यदि अंतरिम रोक नहीं लगाई गई तो डाबर को अपूरणीय क्षति होगी, उच्च न्यायालय ने पतंजलि को किसी भी मीडिया माध्यम से किसी भी रूप में विज्ञापन को जारी करने, प्रसारित करने या टीवी पर प्रसारण करने से रोक दिया।
अदालत ने पतंजलि को तीन दिनों के भीतर सभी माध्यमों से विज्ञापन को हटाने, रोकने या अक्षम करने का भी निर्देश दिया। पतंजलि ने तर्क दिया कि विज्ञापन में केवल उसके उत्पाद का उल्लेख किया गया था और ‘धोखा’ शब्द का इस्तेमाल रचनात्मक अभिव्यक्ति के रूप में या अतिशयोक्ति के रूप में किया गया था। पतंजलि ने इस बात पर जोर दिया कि वाणिज्यिक विज्ञापन संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के रूप में संरक्षित है।
हालांकि,अदालत ने कहा कि विज्ञापन स्वीकार्य अतिशयोक्ति से परे है और अन्य सभी च्यवनप्राश उत्पादों को भ्रामक कहना बदनाम करने के समान है।
अदालत ने कहा कि विज्ञापनदाता अपने उत्पादों की प्रशंसा करने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन वे प्रतिस्पर्धी उत्पादों के एक पूरे वर्ग को बदनाम नहीं कर सकते, खासकर जब ऐसे बयान उपभोक्ताओं को गुमराह कर सकते हों।
उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘एक झूठा विज्ञापन अभियान वादी को अपूरणीय क्षति पहुंचाएगा, जबकि वादी के उत्पाद या अन्य प्रतिस्पर्धियों के उत्पादों को ‘भ्रामक’ बताने वाले विज्ञापन के प्रसारण को रोकने से प्रतिवादियों पर कोई भौतिक प्रभाव नहीं पड़ सकता है, यह देखते हुए कि वह प्रतिस्पर्धी के उत्पादों को भ्रामक बताए बिना अपने उत्पाद का विज्ञापन करने के लिए स्वतंत्र है।’’
इससे पहले जुलाई में, उच्च न्यायालय के एक अन्य न्यायाधीश ने पतंजलि के विज्ञापनों के खिलाफ डाबर इंडिया लिमिटेड की अंतरिम याचिका को अनुमति दे दी थी और पतंजलि को उस विज्ञापन की पहली दो पंक्तियों को हटाने का निर्देश दिया था जिसमें कहा गया है- ‘‘40 जड़ी-बूटियों से बने साधारण च्यवनप्राश से ही क्यों संतुष्ट हो?’’
एकल न्यायाधीश ने पतंजलि को आपत्तिजनक अंश हटाने का निर्देश दिया था, जिसे बाद में खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी गई। खंडपीठ ने भी पतंजलि को आपत्तिजनक अंश हटाने का भी निर्देश दिया है।
भाषा
संतोष