दिल्ली दंगे: अदालत ने कपिल मिश्रा की भूमिका की “आगे की जांच करने” का आदेश खारिज किया
पारुल अविनाश
- 10 Nov 2025, 08:27 PM
- Updated: 08:27 PM
नयी दिल्ली, 10 नवंबर (भाषा) राष्ट्रीय राजधानी की एक अदालत ने दिल्ली पुलिस को 2020 के दंगों में कानून मंत्री कपिल मिश्रा की भूमिका की “आगे की जांच” करने का निर्देश देने वाला आदेश सोमवार को खारिज कर दिया।
अदालत ने कहा कि यह आदेश “अधिकार क्षेत्र संबंधी गंभीर त्रुटि” से ग्रस्त है।
विशेष न्यायाधीश दिग विनय सिंह ने इस बात पर जोर दिया कि किसी के अधिकारों और स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाले न्यायिक आदेश स्पष्ट एवं परस्पर विरोधी व्याख्याओं से मुक्त होने चाहिए।
अदालत मिश्रा और दिल्ली पुलिस की ओर से दायर दो पुनरीक्षण याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मजिस्ट्रेट के एक अप्रैल 2025 के आदेश को चुनौती दी गई थी। उसने कहा कि आदेश में बार-बार “आगे की जांच” शब्द का इस्तेमाल किया गया था और एक बार भी प्राथमिकी दर्ज करने और जांच करने का निर्देश नहीं दिया गया था।
अदालत ने कहा, “न्यायिक आदेश, खासकर वे जो किसी के अधिकारों और संभावित रूप से किसी की स्वतंत्रता को प्रभावित करते हैं, स्पष्ट होने चाहिए। ऐसा कोई भी आदेश जो किसी के अधिकारों और स्वतंत्रता को प्रभावित कर सकता है, स्पष्ट और परस्पर विरोधी व्याख्याओं से मुक्त होना चाहिए।”
मजिस्ट्रेट ने शिकायतकर्ता मोहम्मद इलियास की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान दिल्ली दंगों में मिश्रा की भूमिका की “आगे की जांच करने” का निर्देश दिया था। इलियास ने अपनी याचिका में फरवरी 2020 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान अलग-अलग दिनों में हुई पांच घटनाओं का विवरण दिया था और दावा किया था कि पुलिस अधिकारी या तो इसमें शामिल थे या फिर वे कार्रवाई करने में विफल रहे थे।
न्यायमूर्ति सिंह ने कहा, “हालांकि, मजिस्ट्रेट ने पाया कि पांच में से चार घटनाओं के सिलसिले में प्राथमिकी दर्ज की गई थी, लेकिन उन्होंने इस बात पर चिंता जताई कि पुलिस ने 23 फरवरी 2020 को हुई पांचवीं घटना पर कैसे प्रतिक्रिया दी, जिसे आदेश में पहली घटना के रूप में संदर्भित किया गया है, जिससे जांच, संभावित पूर्वाग्रह और इसकी गहनता पर सवाल उठता है।”
शिकायत के मुताबिक, कथित घटना 23 फरवरी 2020 को सांप्रदायिक दंगों के दौरान हुई थी, जिसमें मिश्रा और उनके सहयोगियों ने कथित तौर पर कर्दमपुरी में सड़कों को अवरुद्ध किया था तथा मुसलमानों और दलितों की गाड़ियों में तोड़फोड़ की थी, जिसमें कथित तौर पर पुलिस की भी मिलीभगत थी।
अदालत ने कहा कि अगर मजिस्ट्रेट का मानना था कि कथित घटना की जांच नहीं की गई है, तो उन्हें तदनुसार नयी प्राथमिकी दर्ज करने और जांच करने का निर्देश देने के अलावा स्पष्ट टिप्पणी करनी चाहिए थी।
उसने कहा, “मजिस्ट्रेट इस तरह की आगे की जांच का आदेश नहीं दे सकते थे, क्योंकि प्राथमिकी संख्या 59/2020 (बड़ी साजिश का मामला) अंतिम रिपोर्ट पेश किए जाने के बाद (कड़कड़डूमा सत्र अदालत में) सुनवाई के अधीन थी।”
अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट न्यायालय ने केवल इस बात पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय कि क्या पहली घटना की जांच की गई थी, सत्र न्यायालय में पहले से ही विचाराधीन मामलों पर गौर किया और टिप्पणियां कीं।
उसने कहा, “उनका (मजिस्ट्रेट का) यह दावा कि अभियोजन पक्ष की दलीलों में कई खामियां थीं और इसमें अनुमान, धारणाएं और व्याख्याएं शामिल थीं, चल रहे मुकदमे के गुण-दोष पर समय से पहले ही निर्णय देता है।”
अदालत ने कहा कि यह आदेश क्षेत्राधिकार संबंधी गंभीर त्रुटि से ग्रस्त और अवैध है, क्योंकि इसमें कथित पहली घटना की आगे की जांच का निर्देश दिया गया है।
उसने कहा कि मजिस्ट्रेट ने मिश्रा और उनके सहयोगियों के हिंसा में शामिल होने का मामला दर्ज करने का निर्देश दिया, जबकि शिकायतकर्ता ने किसी भी तरह की हिंसा का आरोप नहीं लगाया था।
अदालत ने कहा, “कानूनी कार्रवाई शुरू करने के लिए, आवेदन में संज्ञेय अपराध के होने का स्पष्ट रूप से खुलासा होना चाहिए था, जिसका इसमें अभाव है। संज्ञेय अपराध मानने के लिए, मजिस्ट्रेट ने बड़े षड्यंत्र के मामले में कपिल मिश्रा से की गई पूछताछ से मिले अनुमानों पर भरोसा किया।”
उसने कहा कि आदेश में ऊंची अदालत में लंबित मुकदमे की जांच के सिलसिले में अनुचित, अटकलबाजी पर आधारित और पूर्वाग्रहपूर्ण टिप्पणियां की गई थीं।
भाषा पारुल