द्रमुक के बाद माकपा भी तमिलनाडु में एसआईआर के खिलाफ न्यायालय पहुंची
धीरज माधव
- 10 Nov 2025, 06:38 PM
- Updated: 06:38 PM
नयी दिल्ली, 10 नवंबर (भाषा) मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने तमिलनाडु में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) कराने की संवैधानिकता वैधता को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है। वाम दल ने इस प्रक्रिया को ‘मनमाना, गैर कानूनी और असंवैधानिक’ करार दिया है।
प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रम की पीठ से माकपा की ओर से पेश एक अधिवक्ता से अनुरोध किया कि उनकी याचिका पर इसी विषय पर सत्तारूढ़ द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) की ओर से दायर याचिका के साथ मंगलवार को सुनवाई की जाए।
अधिवक्ता के अनुरोध पर सीजेआई ने कहा, ‘‘हम देखेंगे।’’
पिछले सप्ताह द्रमुक ने एसआईआर अधिसूचना को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर की थी। द्रमुक की याचिका पर शीर्ष अदालत ने 11 नवंबर को सुनवाई करेगी।
पार्टी की तमिलनाडु राज्य समिति के सचिव पी षणमुगम द्वारा माकपा की ओर से दाखिल याचिका में निर्वाचन आयोग के 27 अक्टूबर, 2025 के आदेश को रद्द करने का अनुरोध किया गया है, जिसमें एक महीने के भीतर एसआईआर को पूरा करना अनिवार्य किया गया है।
याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया कि निर्वाचन आयोग का कदम ‘‘मनमाना, अवैध और असंवैधानिक’’ है।
याचिका में कहा गया है कि मतदाता सूची की शुद्धता और समावेशिता सुनिश्चित करने का उद्देश्य निर्विवाद है, लेकिन निर्धारित तरीका और समय-सीमा ‘‘स्पष्ट रूप से अव्यावहारिक, मानवीय रूप से असंभव और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और मतदाता पंजीकरण नियम, 1960 के तहत कानून के विपरीत है।’’
इसमें कहा गया कि एसआईआर को लेकर जारी अधिसूचना में चार नवंबर से चार दिसंबर, 2025 के बीच गणना करने का निर्देश दिया गया है। इस प्रक्रिया में तमिलनाडु के 6.18 करोड़ से अधिक मतदाता शामिल होंगे।
माकपा ने अदालत से कहा है कि प्रत्येक बूथ स्तरीय अधिकारी (बीएलओ) को प्रतिदिन लगभग 500 घरों का दौरा करने का काम सौंपा गया है, यह लक्ष्य ‘मानवीय रूप से असंभव’ है, क्योंकि एक बीएलओ प्रतिदिन केवल 40-50 घरों का ही सार्थक दौरा कर सकता है, जिससे यह कार्य ‘स्पष्ट रूप से मनमाना’ प्रतीत होता है।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि निर्वाचन चुनाव आयोग द्वारा नागरिकता सत्यापन करने और नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत ‘संदिग्ध विदेशी नागरिकों’ को संदर्भित करने के लिए अधिकारियों को अधिकृत करना उसकी संवैधानिक सीमाओं से परे है। उसने इसे आयोग के अधिकार क्षेत्र से परे ‘एक तरह से राष्ट्रीय नागरिक पंजी’(एनआरसी) तैयार करने की प्रक्रिया करार दिया।
भाषा धीरज