कानूनी सहायता केवल परोपकार का काम नहीं, बल्कि नैतिक कर्तव्य है: प्रधान न्यायाधीश गवई
देवेंद्र पारुल
- 09 Nov 2025, 08:18 PM
- Updated: 08:18 PM
नयी दिल्ली, नौ नवंबर (भाषा) भारत के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने रविवार को कहा कि कानूनी सहायता महज परोपकार का कार्य नहीं है, बल्कि एक नैतिक कर्तव्य है और कानूनी सहायता अभियान में लगे लोगों को प्रशासनिक कल्पना के साथ अपनी भूमिका निभानी चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि देश के हर कोने तक कानून का शासन पहुंचे।
‘कानूनी सहायता तंत्र को मजबूत बनाने पर’ आयोजित राष्ट्रीय सम्मेलन के समापन समारोह और ‘कानूनी सेवा दिवस’ के मौके पर प्रधान न्यायाधीश गवई ने नीति नियोजन में निरंतरता सुनिश्चित करने के लिए क्रमशः नालसा और एसएलएसए में एक सलाहकार समिति के गठन का सुझाव दिया, जिसमें वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष और दो या तीन भावी कार्यकारी प्रमुख शामिल हों।
उन्होंने कहा, ‘‘साथ ही, कानूनी सहायता अभियान में शामिल सभी लोगों को, चाहे वे अधिकारी हों, प्रशासक हों या स्वयंसेवक, अपनी भूमिका को प्रशासनिक कल्पना के साथ निभाना चाहिए। कानूनी सहायता केवल परोपकार का कार्य नहीं, बल्कि एक नैतिक कर्तव्य है। यह शासन की एक कवायद है, यह सुनिश्चित करने की कि कानून का शासन हमारे देश के हर कोने तक फैले।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि उन्हें न्याय के प्रशासकों की तरह सोचना चाहिए, योजना बनानी चाहिए, समन्वय करना चाहिए और नवाचार करना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि खर्च किया गया प्रत्येक रुपया, किया गया प्रत्येक दौरा और किया गया प्रत्येक हस्तक्षेप वास्तव में किसी जरूरतमंद व्यक्ति का उत्थान करे।
न्यायमूर्ति गवई ने विधिक सेवा प्राधिकरणों के लिए दीर्घकालिक संस्थागत दृष्टिकोण के साथ अपने प्रयासों की संकल्पना और क्रियान्वयन की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में, प्राथमिकताएं अक्सर व्यक्तिगत कार्यकारी अध्यक्षों के कार्यकाल से निर्धारित होती हैं, जिनमें से प्रत्येक के पास योजनाओं को लागू करने के लिए सीमित समय होता है।
उन्होंने नालसा (राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण) द्वारा उसकी 30वीं वर्षगांठ के मौके पर आयोजित कार्यक्रम में कहा कि इससे विचारों में विविधता आती है, लेकिन इससे निरंतरता और सतत कार्यान्वयन भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘इससे निपटने के लिए, मैं क्रमशः नालसा और एसएलएसए में एक सलाहकार समिति के गठन का सुझाव देता हूं, जिसमें वर्तमान कार्यकारी अध्यक्ष और दो या तीन भावी कार्यकारी अध्यक्ष शामिल हों। यह समिति दीर्घकालिक परिप्रेक्ष्य वाली परियोजनाओं पर चर्चा करने और नजर रखने के लिए तिमाही या हर छह महीने में बैठक कर सकती है।’’
इस कार्यक्रम में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और शीर्ष न्यायालय और उच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीश भी शामिल हुए।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि इन संस्थाओं का नेतृत्व करने वाले व्यक्ति बदल सकते हैं, लेकिन प्रत्येक नागरिक के लिए न्याय सुनिश्चित करने का संवैधानिक जनादेश स्थिर रहता है।
न्यायमूर्ति गवई ने इस बात पर जोर दिया कि कानूनी सहायता की पहुंच और लचीलेपन को मजबूत करने के लिए एक सतत, समन्वित और दूरदर्शी दृष्टिकोण आवश्यक है।
उन्होंने कहा, ‘‘दो सप्ताह में अपना पद छोड़ने से पहले, मैं उन सभी न्यायिक अधिकारियों के लिए एक संदेश छोड़ना चाहूंगा, जो विधिक सेवा प्राधिकरणों में प्रतिनियुक्ति पर आते हैं। न्यायिक प्रशिक्षण अक्सर हमें एक निश्चित दूरी बनाए रखना, निष्पक्षता से साक्ष्य का मूल्यांकन करना और तर्कसंगत निर्णय लेना सिखाता है। लेकिन विधिक सहायता का कार्य इसके विपरीत संवेदनशीलता की मांग करता है।’’
न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘कानूनी सेवा संस्थानों में काम करते समय हमारी भूमिका निर्णय देने की नहीं, बल्कि सरकारी विभागों के अधिकारियों के साथ संपर्क स्थापित करने, समन्वय स्थापित करने, नागरिक समाज संगठनों के साथ साझेदारी बनाने तथा नागरिकों तक करुणा और स्पष्ट रूख के साथ पहुंचने की होती है।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि वह जहां भी गए हैं, उन्होंने देखा है कि सरकारी अधिकारी कानूनी सहायता को बढ़ावा देने और जरूरतमंदों तक सरकारी योजना का लाभ पहुंचाने में बहुत सहयोग करते हैं।
उन्होंने न्यायपालिका, कार्यपालिका और नागरिक समाज के बीच सहयोग को मजबूत करने, मानवीय पहलू को खोए बिना प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करने और प्रगति को केवल संख्या में नहीं, बल्कि सेवा प्राप्त करने वालों को लौटाई गई गरिमा में मापने का आह्वान किया।
भाषा
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