जलवायु संकट के दौरान सामाजिक भेद्यता महिलाओं पर असमान रूप से प्रभाव डालती है
रवि कांत नेत्रपाल
- 09 Nov 2025, 05:34 PM
- Updated: 05:34 PM
(गुंजन शर्मा)
नयी दिल्ली, नौ नवंबर (भाषा) जलवायु संकट के दौरान सामाजिक भेद्यता अवैतनिक घरेलू कार्यों और अनिश्चित संसाधनों पर निर्भरता के कारण महिलाओं को असमान रूप से प्रभावित कर सकती है। गोवा प्रबंधन संस्थान की ओर से किए गए एक अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है।
अधिकारियों ने बताया कि गोवा प्रबंधन संस्थान (जीआईएम) के शोधकर्ताओं ने यह अध्ययन किया। इस अध्ययन का उद्देश्य इस बात पर प्रकाश डालना है कि जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने के लिए स्थानीय नारीवादी दृष्टिकोण का किस प्रकार लाभ उठाया जा सकता है। जलवायु परिवर्तन का विशेष रूप से महिलाओं के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।
इसमें यह भी बताया गया है कि किस प्रकार ये दृष्टिकोण पितृसत्तात्मक मानदंडों को चुनौती देते हैं, एजेंसी का निर्माण करते हैं तथा सामुदायिक निर्णय लेने की प्रक्रिया को मजबूत करते हैं।
यह अध्ययन जर्मन इंस्टिट्यूट ऑफ डेवलपमेंट एंड सस्टेनेबिलिटी (आईडीओएस) द्वारा ‘स्थानीय नारीवादी दृष्टिकोण परिवर्तनकारी लीवर के रूप में: भारत में महिला स्वास्थ्य और जलवायु कार्रवाई’ नामक शीर्षक से एक चर्चा पत्र के रूप में प्रकाशित किया गया है।
यह अध्ययन समानता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए लिंग, स्वास्थ्य और जलवायु के बीच अंतर्संबंधों को संबोधित करने के लिए एक अंतर्विषयक दृष्टिकोण अपनाने की वकालत करता है।
जीआईएम की एसोसिएट प्रोफेसर श्रीरूपा सेनगुप्ता के अनुसार, इस अध्ययन की विशिष्टता हमारे देश के स्थानीय नारीवाद के विविध पहलुओं पर इसके ध्यान में निहित है। महिला आंदोलन पर उनके प्रभाव का वर्णन करते हुए, तथा इस बात पर भी चर्चा की गई कि किस प्रकार इन नारीवादी प्रयासों ने समुदाय में महिलाओं को आवाज और पहचान दी है।
सेनगुप्ता ने कहा, ‘‘यह अध्ययन समानता और न्याय के लिए विभिन्न श्रेणियों की महिलाओं को संगठित करने में स्थानीय नारीवाद की भूमिका की ऐतिहासिक समझ प्रदान करता है। महिलाओं के स्वास्थ्य और जलवायु कार्रवाई पर विशेष रूप से ध्यान केंद्रित करते हुए, अध्ययन में लिंग-संवेदनशील, सहभागी दृष्टिकोणों के माध्यम से अंतर-असमानताओं को दूर करने में समुदाय-आधारित संगठनों की भूमिका पर प्रकाश डाला गया है।’’
अध्ययन में समुदाय-आधारित संगठनों द्वारा सफल प्रथाओं का दस्तावेजीकरण किया गया है तथा लैंगिक समानता और सतत विकास में तेजी लाने के लिए स्वास्थ्य और जलवायु संबंधी नीतियों में नारीवादी, अंतर्विषयक तथा समुदाय-नेतृत्व वाले ढांचे को शामिल करके एक सहयोगात्मक नीति डिजाइन की सिफारिश की गई है।
भाषा रवि कांत