उपराष्ट्रपति ने श्रवणबेलगोला को आध्यात्मिकता, शांति और त्याग का प्रतीक बताया
नोमान नेत्रपाल
- 09 Nov 2025, 03:36 PM
- Updated: 03:36 PM
हासन (कर्नाटक), नौ नवंबर (भाषा) उपराष्ट्रपति सी.पी. राधाकृष्णन ने श्रवणबेलगोला में जैन मुनि आचार्य श्री शांति सागर महाराज को रविवार को श्रद्धांजलि अर्पित की और कहा कि यह पवित्र भूमि ‘‘आध्यात्मिकता, शांति और त्याग के प्रतीक’’ के रूप में समय की कसौटी पर खरी उतरी है।
आचार्य के स्मरणोत्सव में उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘जैसा कि हम सभी जानते हैं कि पूरा कर्नाटक एक अच्छी जगह है। कर्नाटक ने हमेशा अपनी परंपरा, विरासत और संस्कृति की रक्षा की है। आप जहां भी जाते हैं, कन्नड़ लोग संस्कृति की रक्षा करते हैं। यह हमारी संस्कृति में एक महान योगदान है।’’
उन्होंने कहा कि श्रवणबेलगोला सबसे प्रतिष्ठित जैन तीर्थ केंद्रों में से एक है जहां जैन धर्म के विचारों की सच्चाई की शाश्वत ज्योति लगातार प्रेरणा देती रहती है।
राधाकृष्णन ने कहा, ‘‘श्रवणबेलगोला की यह पवित्र भूमि आध्यात्मिकता, शांति और त्याग के प्रतीक के रूप में समय की कसौटी पर खरी उतरी है।’’
उपराष्ट्रपति ने उल्लेख किया कि भगवान बाहुबली की 57 फुट ऊंची अखंड मूर्ति मानव भक्ति और कलात्मक प्रतिभा का एक शानदार प्रमाण बनी हुई है।
इतिहास को याद करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य ने भगवान महावीर के शिष्य आचार्य भद्रबाहु के मार्गदर्शन में जैन धर्म के मार्ग को अपनाने के लिए अपना सिंहासन और सांसारिक सुख त्याग दिए थे। वे एक साथ मुक्ति और आध्यात्मिक शांति की तलाश में यहां (श्रवणबेलगोला) आए थे। यह यात्रा आज भी साधकों को प्रेरित करती रहती है।’’
श्रवणबेलगोला मठ के वर्तमान महंत स्वस्ति श्री चारुकीर्ति भट्टारक स्वामी की भूमिका की प्रशंसा करते हुए, राधाकृष्णन ने कहा कि उनका दूरदर्शी नेतृत्व भगवान बाहुबली के चार भव्य महामस्तकाभिषेक की सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।
राधाकृष्णन ने कहा कि महंत ने अस्पताल और शैक्षणिक संस्थान भी स्थापित किए हैं, जो सेवा और मानवता की सेवा के दर्शन को विस्तार देते हैं और उन्होंने भारतीय प्राचीन विरासत और इसके आधुनिक शैक्षणिक परिदृश्य को जोड़ने के लिए प्राकृत भाषा को पुनर्जीवित करने के प्रयास किए।
उन्होंने कहा, ‘‘मुझे यह बताते हुए खुशी हो रही है कि केंद्र सरकार ने, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के महान नेतृत्व में, पिछले साल प्राकृत को शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिया।’’ उपराष्ट्रपति ने कहा कि ‘‘कन्नड़ भी एक महान शास्त्रीय भाषा है जिसे भी स्थापित किया गया है।’’
राधाकृष्णन ने कहा कि तमिलनाडु और जैन धर्म के बीच गहरे और ऐतिहासिक संबंध हैं। उन्होंने कहा, ‘‘एक समय था जब हर तीन में से दो तमिल लोग जैन धर्म का पालन करते थे।’’
उपराष्ट्रपति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि ‘‘संगम और उत्तर-संगम काल के दौरान तमिल साहित्य एवं संस्कृति में जैन धर्म का योगदान बहुत बड़ा और अपार है।’’
राधाकृष्णन ने याद किया कि झारखंड के राज्यपाल के रूप में उन्होंने पवित्र जैन तीर्थ स्थल पारसनाथ का दौरा किया था और कई जैन समारोहों में भाग लिया था।
उन्होंने कहा, ‘‘वह (शांति सागर महाराज) जैन दर्शन के मूल का प्रतिनिधित्व करते हैं - अहिंसा, अपरिग्रह और अनेकांतवाद - ऐसे सिद्धांत हैं जो सद्भाव की तलाश में दुनिया के लिए काफी प्रासंगिकता रखते हैं।’’
अपना संबोधन समाप्त करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘‘जब मौर्य राजा यहां आए थे, तो यह दर्शाता है कि आपके जीवन में आपकी उपलब्धि जो भी हो, आपको आध्यात्मिकता की ओर लौटना होगा। स्वामीजी के महान योगदान ने श्रवणबेलगोला को जैन धर्म और दर्शन का केंद्र बना दिया है।’’
भाषा नोमान