जेमिमा रोड्रिग्स का मानसिक स्वास्थ्य पर खुलकर बोलना भारत को सचेत करने वाला: विशेषज्ञ
पारुल नेत्रपाल
- 08 Nov 2025, 08:04 PM
- Updated: 08:04 PM
नयी दिल्ली, आठ नवंबर (भाषा) महिला वनडे क्रिकेट विश्व कप विजेता टीम की सदस्य जेमिमा रोड्रिग्स के खुद के बेचैनी और आत्मसंदेह की भावना से जूझने तथा ऑनलाइन आलोचना से उत्पन्न भावनात्मक तनाव के बारे में खुलकर बोलने के बाद मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर बहस फिर से शुरू हो गई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह घटनाक्रम मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को व्यक्तिगत संघर्ष के बजाय एक सामूहिक और नीति-आधारित लड़ाई के रूप में पुनः परिभाषित करने का अवसर प्रदान करता है।
जेमिमा ने विश्व कप के सेमीफाइनल मुकाबले में शतक जड़ा था, जिसकी बदौलत भारतीय टीम को ऑस्ट्रेलिया पर जीत दर्ज करने और फाइनल में जगह बनाने में मदद मिली थी।
तीस अक्टूबर को मैच के बाद आयोजित संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने कहा था, ‘‘इस दौरे के दौरान मैं लगभग हर दिन रोई। मानसिक रूप से ठीक नहीं हूं, बेचैनी की समस्या से जूझ रही हूं।’’
जेमिमा की टिप्पणियों ने मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर फिर से बहस छेड़ दी है और विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ मशहूर हस्तियों या सार्वजनिक हस्तियों तक सीमित मुद्दा नहीं है। उन्होंने कहा कि मानसिक तनाव सभी को प्रभावित करता है, फिर भी ज्यादातर लोग इसके बारे में खुलकर बात नहीं करते।
विशेषज्ञों के मुताबिक, कई लोग लक्षणों को पहचान नहीं पाते, जबकि कुछ की मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों तक पहुंच नहीं होती और कुछ अपने परिवार के सदस्यों या दोस्तों से इस बारे में बात करने से डरते हैं। हालांकि, डॉक्टर चेतावनी देते हैं कि ऐसे संकेतों को नजरअंदाज करना खतरनाक हो सकता है।
मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रहे लोगों की देखभाल करने वाली संस्था ‘इमोनीड्स’ की संस्थापक डॉ. नीरजा अग्रवाल ने कहा, ‘‘जेमिमा का साहस हमें याद दिलाता है कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियां सफलता, प्रतिभा या प्रसिद्धि से परे, किसी को भी प्रभावित कर सकती हैं।’’
उन्होंने कहा कि खिलाड़ियों पर लगातार अच्छा प्रदर्शन करने का दबाव, असफलता का डर और प्रशंसकों की कभी खत्म न होने वाली उम्मीदें, उन संघर्षों पर प्रकाश डालती हैं, जिनका कई लोग कार्यस्थल पर, स्कूल-कॉलेज में या यहां तक कि ऑनलाइन मंचों पर भी सामना करते हैं।
अग्रवाल ने कहा, ‘‘हालांकि, सोशल मीडिया सशक्त बनाता है, लेकिन इस पर कठोर टिप्पणियों, ‘बुलिंग’, तनाव और अलगाव का भी सामना करना पड़ सकता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘जेमिमा की ईमानदारी हमें याद दिलाती है कि इंसान को उतार-चढ़ाव, दोनों का अनुभव करना पड़ता है और जब हम खुलकर बात करते हैं, एक-दूसरे का समर्थन करते हैं और मानसिक स्वास्थ्य एवं ऑनलाइन उत्पीड़न के बारे में बातचीत को सामान्य बनाते हैं, तब उपचार शुरू होता है।’’
अग्रवाल ने कहा कि भारत में मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों तक पहुंच अब भी सीमित है। उन्होंने कहा कि इस परिदृश्य में ऑनलाइन परामर्श एक आशाजनक सेतु के रूप में उभरा है।
‘इमोनीड्स’ के सह-संस्थापक तनमय गोयल ने कहा कि भारत में 20 करोड़ से ज्यादा लोग मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों से जूझ रहे हैं, फिर भी हर 1,00,000 लोगों पर मुश्किल से एक चिकित्सक उपलब्ध है।
उन्होंने कहा कि ‘इमोनीड्स’ यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रही है कि जब सबसे अधिक आवश्यकता हो, तब सहायता उपलब्ध हो।
गोयल ने कहा, ‘‘हम कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) आधारित ‘टूल’ बना रहे हैं, जो थेरेपी सत्रों के बीच चौबीसों घंटे सहायता मुहैया करा सकते हैं, चिकित्सकों को गहन अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं और निर्बाध देखभाल उपलब्ध करा सकते हैं।’’
उन्होंने कहा कि प्रौद्योगिकी मानसिक स्वास्थ्य को हर जरूरतमंद भारतीय के लिए सुलभ, किफायती और वर्जना-मुक्त बना रही है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) दिल्ली की मनोवैज्ञानिक डॉ. दीपिका दहिमा ने कहा कि जेमिमा का अपने मानसिक स्वास्थ्य के बारे में खुलकर बोलना, मनोवैज्ञानिक स्वास्थ्य को व्यक्तिगत संघर्ष के बजाय एक सामूहिक, नीति-आधारित चिंता के रूप में पुन: परिभाषित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पल है।
उन्होंने कहा कि जेमिमा की कहानी दर्शाती है कि भावनात्मक संकट के लिए अक्सर प्रणालीगत कारक, सामाजिक अपेक्षाएं, प्रदर्शन का दबाव, लिंग आधारित मूल्यांकन और मनोवैज्ञानिक सहायता तक सीमित पहुंच जिम्मेदार होती है।
सीताराम भरतिया अस्पताल के परामर्शदाता मनोचिकित्सक डॉ. जितेंद्र जाखड़ ने कहा कि भारत में मानसिक बीमारी अक्सर प्रत्यक्ष संकट से जुड़ी होती है-जैसे कि कोई परेशानियों से जूझ रहा हो, अलग-थलग हो या किसी स्थिति का सामना करने में असमर्थ हो। उन्होंने कहा कि मानसिक स्वास्थ्य संबंधी संघर्ष हमेशा नाटकीय नहीं दिखते।
जाखड़ ने कहा, ‘‘कई लोग, जो ठीक-ठाक दिखते हैं, कार्यस्थल पर अच्छा प्रदर्शन करते हैं, दोस्तों के साथ हंसते-खेलते हैं और अपने क्षेत्र में ऊंचे मुकाम पर हैं, वे चुपचाप उच्च-कार्यात्मक चिंता या अवसाद से ग्रस्त रहते हैं। वे उम्मीदों पर खरे उतरने की कोशिशों में उलझे रहते हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ऐसे लोग अंदर ही अंदर चिंता, आत्म-संदेह और एक गहरी, अदृश्य थकान से जूझते रहते हैं। कभी-कभी वे अभ्यास करने जाते हैं, शतक लगाते हैं और अपनी टीम के साथियों का उत्साहवर्धन करते हैं - जैसे जेमिमा ने किया - और चुपचाप खुद को संभाले रखते हैं।’’
भाषा पारुल