मुंबई में 90,000 से अधिक आवारा कुत्ते, लेकिन उनके लिए मात्र आठ आश्रय स्थल: बीएमसी अधिकारी
अमित सुभाष
- 08 Nov 2025, 07:50 PM
- Updated: 07:50 PM
मुंबई, आठ नवंबर (भाषा) मुंबई में 90,000 से अधिक आवारा कुत्ते हैं, लेकिन उनके लिए आश्रय स्थलों की संख्या सिर्फ आठ है। बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के अधिकारियों ने शनिवार को यह जानकारी दी।
उच्चतम न्यायालय ने एक दिन पहले शुक्रवार को, शैक्षणिक केंद्रों, अस्पतालों, बस अड्डों और रेलवे स्टेशनों जैसे संस्थागत क्षेत्रों में कुत्तों द्वारा काटे जाने की घटनाओं में ‘‘खतरनाक वृद्धि’’ का संज्ञान लिया तथा प्राधिकारियों को ऐसे कुत्तों को निर्दिष्ट आश्रय स्थलों पर ले जाने का निर्देश दिया।
अधिकारियों ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के आदेश को लागू करने के लिए महानगर में और अधिक ऐसे आश्रय स्थलों की स्थापना की आवश्यकता है।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि संस्थागत क्षेत्रों में कुत्तों के काटने की घटनाओं की पुनरावृत्ति न केवल प्रशासनिक उदासीनता दर्शाती है, बल्कि इन परिसरों को रोके जा सकने वाले खतरों से सुरक्षित रखने में "प्रणालीगत विफलता" भी दर्शाती है।
उच्चतम न्यायालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को आवारा कुत्तों के खतरे के मामले में अदालत के निर्देशों के अनुपालन के बारे में न्यायमित्र द्वारा दायर रिपोर्ट में बताई गई "कमियों और खामियों" को दूर करने के लिए उचित कदम उठाने का भी निर्देश दिया।
निकाय अधिकारियों ने बताया कि बीएमसी द्वारा 11 वर्ष पहले की गई गणना के अनुसार, मुंबई में कम से कम 95,752 आवारा कुत्ते थे, लेकिन 2014 से नगर निकाय द्वारा चलाए गए प्रभावी पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) कार्यक्रम के कारण अब यह संख्या लगभग 5,000 कम हो गई है।
उन्होंने बताया कि वर्तमान में मुंबई में केवल आठ ‘डॉग शेल्टर’ (कुत्तों के आश्रय स्थल) हैं और उनमें भी जगह की भारी कमी है, क्योंकि पहले की नीति के अनुसार अधिकारी बंध्याकरण के बाद आवारा कुत्तों को फिर से छोड़ दिया करते थे।
अधिकारियों के अनुसार, शुक्रवार को जारी उच्चतम न्यायालय के निर्देश के क्रियान्वयन के लिए, मुंबई को सबसे पहले सार्वजनिक स्थानों से आवारा कुत्तों को हटाने और उन्हें कुत्ता आश्रयों में स्थानांतरित करने की अपनी क्षमता बढ़ानी होगी, जहां उन्हें उनके जीवन के शेष समय के लिए रखा जाना होगा।
एक कुत्ते का औसत जीवनकाल 12 से 15 वर्ष के बीच होता है।
बीएमसी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय के निर्देश में कहा गया है कि कुत्तों को आश्रय गृह में भेजने से पहले उनका बंध्याकरण किया जाए। आश्रय गृह में कुत्तों के लिए देखभाल करने वाले और पशु चिकित्सक नियुक्त करने के साथ-साथ उनके भोजन और पानी की व्यवस्था भी करनी होगी।"
अधिकारी ने कहा कि मुंबई में उच्चतम न्यायालय के निर्देश के क्रियान्वयन के लिए कड़ी निगरानी और क्रियान्वयन की आवश्यकता होगी। उन्होंने यह भी कहा कि कुत्तों के आश्रय गृहों की उचित बाड़ लगाई जानी चाहिए ताकि कोई कुत्ता भाग न सके या कोई बाहरी कुत्ता अंदर न आ सके।
उन्होंने कहा, ‘‘उच्चतम न्यायालय के निर्देश के अनुसार, यदि मुंबई में 30 से 40 प्रतिशत आवारा कुत्तों को शिक्षण संस्थानों, रेलवे स्टेशन, खेल परिसरों और अन्य सार्वजनिक स्थानों से हटा भी दिया जाए, तो भी लगभग 40,000 ऐसे कुत्तों के लिए आश्रय स्थलों की आवश्यकता होगी।’’
उन्होंने कहा, "कुत्तों का एक जोड़ा साल में लगभग 20 पिल्लों को जन्म देता है। चूंकि उनकी वृद्धि दर काफी तेज होती है, इसलिए उनकी संख्या को नियंत्रित रखने के लिए प्रभावी बंध्याकरण जरूरी है। इसीलिए, बीएमसी 1984 से शहर में अपना जन्म नियंत्रण कार्यक्रम लागू कर रही है।"
पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियमों के अनुसार, कुल आबादी के 70 प्रतिशत कुत्तों का हर साल टीकाकरण करना जरूरी है ताकि कुत्तों के बीच रेबीज को फैलने से रोका जा सके और इसका प्रभावी ढंग से पालन किया गया है।
इस बीच, एक पशु कल्याण कार्यकर्ता ने आगाह किया कि सामुदायिक जानवरों को हटाना केवल एक अस्थायी समाधान होगा और समय के साथ समस्या और भी बदतर हो सकती है।
आरएडब्ल्यूडब्ल्यू संस्थापक अध्यक्ष एवं अधिवक्ता पवन शर्मा ने कहा कि कुत्ते अत्यधिक क्षेत्रीय होने के कारण खाली पड़े क्षेत्रों को समझेंगे और कुछ ही समय में उन पर कब्ज़ा कर लेंगे। उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया कभी न ख़त्म होने वाला काम होगा और इसमें भारी संसाधनों की खपत होगी।
शर्मा ने कहा, "आश्रय स्थलों की अवधारणा उन पशुओं के लिए है जिनका कोई देखभाल करने वाला नहीं होता या जो विकलांगता के कारण आश्रित होते हैं। हालांकि, हमारे आवारा पशु, जो अधिकतर मामलों में स्वस्थ होते हैं, आश्रय स्थलों में सीमित स्थानों तक सीमित रहने से उनके जीवन की गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।"
उन्होंने कहा कि आवारा पशुओं की समस्या वास्तविक है, लेकिन उन्हें हटाने जैसे तात्कालिक समाधान से वास्तव में इसका समाधान नहीं होगा। शर्मा ने कहा, "इसका समाधान एबीसी (पशु जन्म नियंत्रण) कार्यक्रम हैं, जो सरकार द्वारा गैर-सरकारी संगठनों की सहायता से सीधे चलाए जाते हैं।"
भाषा अमित