उम्मीद है कि हॉकी विश्व कप में भी 50 साल का इंतजार खत्म होगा : गुरबख्श सिंह
मोना आनन्द
- 07 Nov 2025, 05:57 PM
- Updated: 05:57 PM
(मोना पार्थसारथी)
नयी दिल्ली, सात नवंबर (भाषा) हरमनप्रीत कौर की कप्तानी में भारतीय महिला क्रिकेट टीम की विश्व कप में खिताबी जीत को ऐतिहासिक बताते हुए भारतीय हॉकी के सबसे सीनियर ओलंपिक स्वर्ण पदक विजेता गुरबख्श सिंह ने उम्मीद जताई कि हरमनप्रीत सिंह की टीम हॉकी में भी विश्व कप के लिये 50 साल का इंतजार खत्म करेगी।
आठ बार की ओलंपिक चैम्पियन भारतीय पुरूष हॉकी टीम अब तक सिर्फ एक बार 1975 में कुआलालम्पुर में विश्व कप जीत सकी है । पिछली बार 2023 में भुवनेश्वर और राउरकेला में हुए विश्व कप में मेजबान भारत संयुक्त नौवे स्थान पर रहा था ।
तोक्यो ओलंपिक 1964 में स्वर्ण और मैक्सिको में चार साल बाद कांस्य पदक जीतने वाले 90 वर्ष के गुरबख्श ने भारतीय हॉकी के सौ साल पूरे होने के अवसर पर भाषा से खास बातचीत में कहा ,‘‘भारत की लड़कियों ने क्रिकेट में हाल ही में विश्व कप जीता है और इससे देश में महिला क्रिकेट को बहुत फायदा मिलेगा । उम्मीद है कि हॉकी में भी अगले साल विश्व कप जीतकर हम इंतजार खत्म करेंगे ।’’
विश्व कप अगले साल बेल्जियम और नीदरलैंड में जुलाई अगस्त में होगा और भारत ने एशिया कप जीतकर टूर्नामेंट के लिये क्वालीफाई कर लिया है ।
उन्होंने कहा कि विश्व कप एस्ट्रो टर्फ के दौर में शुरू हुआ और यही वजह है कि भारत ओलंपिक के प्रदर्शन को उसमे दोहरा नहीं सका ।
गुरबख्श ने कहा ,‘‘ विश्व कप एस्ट्रो टर्फ के आने के बाद आया । ओलंपिक में भी टर्फ के आने के बाद हमारे प्रदर्शन में गिरावट आई थी तो शायद वही वजह रही होगी लेकिन मौजूदा प्रदर्शन को देखते हुए मुझे यकीन है कि विश्व कप में भी पदक अब दूर नहीं ।’’
उन्होंने कहा कि हरमनप्रीत की कप्तानी वाली भारतीय टीम विश्व कप जीत सकती है लेकिन इसमें कुछ बदलाव करने होंगे ।
उन्होंने कहा ,‘‘ इस टीम में अधिकांश खिलाड़ी दस साल से अधिक से खेल रहे हैं । बदलाव अच्छे होने चाहिये जिससे दावा और पुख्ता होगा । मेरी सलाह यही है कि अच्छा खेल रहे हो और इस लय को कायम रखो लेकिन जूनियर खिलाड़ियों में से भी कुछ को लाना होगा ।’’
एशियाई खेल 1966 में स्वर्ण पदक जीतने वाली टीम के अहम सदस्य रहे गुरबख्श ने कहा कि भारतीय हॉकी सही राह पर है लेकिन इसे ऊपर की ओर जाना होगा ।
उन्होंने कहा ,‘‘ इस स्तर पर आपको शीर्ष पांच टीमों में आना होगा । ओलंपिक या विश्व कप में सेमीफाइनल पहला लक्ष्य होना चाहिये जिसके बाद कोई भी पदक आ सकता है । मैं हमेशा से सेमीफाइनल को लक्ष्य लेकर चलता था ।’’
भारतीय हॉकी के सौ साल के सफर को यादगार बताते हुए उन्होंने कहा कि कृत्रिम टर्फ आने के बाद करीब 40 साल तक भारतीय हॉकी लगभग गायब हो गई लेकिन तोक्यो और पेरिस ओलंपिक में कांस्य पदकों के साथ वापसी हुई है और अब इससे बेहतर करना होगा ।
उन्होंने कहा ,‘‘ मैं उम्मीद करता हूं कि यह वापसी सिर्फ कांस्य तक नहीं रहेगी, स्वर्ण में तब्दील होगी । हमने ओलंपिक में आठ स्वर्ण पदक जीते हैं जो कोई छोटी बात नहीं है ।’’
तोक्यो ओलंपिक 1964 से चार साल पहले रोम में भारत ने अपना खिताब पाकिस्तान को गंवा दिया था । तोक्यो में काफी तनावपूर्ण माहौल में खेले गए फाइनल में चरणजीत सिंह की कप्तानी में भारत ने फाइनल में पाकिस्तान को हराया ।
पुरानी यादों को ताजा करते हुए गुरबख्श का चेहरा चमक उठा और उन्होंने कहा ,‘‘ 1960 में हम हार चुके थे और 1964 में हर हालत में जीतना था । हमारे पास फाइनल में खोने के लिये कुछ नहीं था । पाकिस्तानी अधिक नर्वस थे लेकिन हमने आराम से खेला और हमने अपना सब कुछ झोंक दिया था । थोड़ा तनाव भी हो गया था । आखिरी पांच मिनटों में गोलकीपर शंकर लक्ष्मण ने मुनीर दर के दो पेनल्टी कार्नर बचाकर यादगार जीत दिलाई ।’’
उन्होंने कहा ,‘‘ इसके बाद 1966 में पहली बार एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक जीता । यह सफर सुनहरा रहा है और मुझे गर्व का अनुभव होता है ।’’
हॉकी में आये बदलावों के बारे में उन्होंने कहा ,‘‘ आप ध्यानचंद के दौर की हॉकी या 1948, 1952 या 1956 की हॉकी की तुलना आज की हॉकी से नहीं कर सकते । घास पर खेली जाने वाली हॉकी और एस्ट्रोटर्फ में जमीन आसमान का फर्क है । इसकी मांगे भी अलग हैं लेकिन भारतीय टीम इसके अनुरूप बखूबी ढल गई है ।’’
भाषा
मोना आनन्द