वंदे मातरम् के महत्वपूर्ण छंद 1937 में हटाए गए, विभाजनकारी मानसिकता अब भी चुनौती: प्रधानमंत्री मोदी
वैभव नरेश
- 07 Nov 2025, 06:21 PM
- Updated: 06:21 PM
(तस्वीरों के साथ जारी)
नयी दिल्ली, सात नवंबर (भाषा) प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कांग्रेस पर स्पष्ट रूप से हमला करते हुए शुक्रवार को कहा कि 1937 में राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ के महत्वपूर्ण छंदों को हटा दिया गया था जिसने विभाजन के बीज बोये और इस प्रकार की ‘‘विभाजनकारी मानसिकता’’ देश के लिए अब भी चुनौती है।
प्रधानमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय गीत 'वंदे मातरम' के 150 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में एक साल तक मनाए जाने वाले स्मरणोत्सव की शुरुआत करते हुए ये बात कही। मोदी ने इस अवसर पर यहां इंदिरा गांधी इनडोर स्टेडियम में एक स्मारक डाक टिकट और सिक्का भी जारी किया।
मोदी ने कहा, ‘‘वंदे मातरम भारत के स्वतंत्रता संग्राम की आवाज बन गया। इसने हर भारतीय की भावनाओं को व्यक्त किया। दुर्भाग्य से 1937 में वंदे मातरम के महत्वपूर्ण छंदों को... उसकी आत्मा के एक हिस्से को निकाल दिया गया। वंदे मातरम के विभाजन ने बंटवारे के बीज भी बोये। आज की पीढ़ी को यह जानने की जरूरत है कि राष्ट्र निर्माण के इस महामंत्र के साथ यह अन्याय क्यों हुआ... यह विभाजनकारी मानसिकता देश के लिए आज भी एक चुनौती है।’’
प्रधानमंत्री ने ‘वंदे मातरम’ को हर युग में प्रासंगिक बताया और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का स्पष्ट संदर्भ देते हुए कहा, ‘‘जब दुश्मन ने आतंकवाद का इस्तेमाल करके हमारी सुरक्षा और सम्मान पर हमला करने का दुस्साहस किया तो दुनिया ने देखा कि नए भारत ने मानवता की सेवा में कमला और विमला की भावना को साकार किया। भारत दुर्गा का रूप धारण करना भी जानता है।’’
भारत की संविधान सभा ने 24 जनवरी 1950 को आधिकारिक तौर पर "वंदे मातरम" को राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया, जिससे इसे स्थायी महत्व प्राप्त हुआ।
विभिन्न विवरणों के अनुसार, "वंदे मातरम" के एक संक्षिप्त संस्करण को, जिसमें मूल छह छंदों में से केवल पहले दो को रखा गया था, 1937 में कांग्रेस द्वारा राष्ट्रीय गीत के रूप में चुना गया था। तब मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, जवाहरलाल नेहरू, सुभाष चंद्र बोस, आचार्य नरेंद्र देव और रवींद्रनाथ टैगोर की एक समिति ने इसे अपनाने की सिफारिश की थी।
प्रधानमंत्री के भाषण से पहले दिन में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने आरोप लगाया कि कांग्रेस ने ‘‘जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में अपने सांप्रदायिक एजेंडे को खुलकर आगे बढ़ाते हुए 1937 में ‘वंदे मातरम’ के केवल संक्षिप्त संस्करण को पार्टी के राष्ट्रीय गीत के रूप में अपनाया’’ था।
भाजपा प्रवक्ता सी आर केसवन ने सोशल मीडिया मंच ‘एक्स’ पर लिखा, ‘‘कांग्रेस ने गीत को धर्म से जोड़ने का ऐतिहासिक पाप और भूल की। नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस ने वंदे मातरम के उन छंदों को धार्मिक आधार पर जानबूझकर हटा दिया जिनमें देवी मां दुर्गा की स्तुति की गई थी।’’
मोदी ने समारोह में कहा कि आज जब देश ‘वंदे मातरम’ के 150 वर्ष पूरे हो रहे हैं तो यह ‘‘हमें नयी प्रेरणा देता है और देशवासियों को नयी ऊर्जा से भर देता’’ है।
उन्होंने कहा, ‘‘वंदे मातरम एक शब्द है, एक मंत्र है, एक ऊर्जा है, एक स्वप्न है, एक संकल्प है। यह भारत मां के प्रति समर्पण है, भारत मां की आराधना है। यह हमें हमारे इतिहास से जोड़ता है और हमारे भविष्य को नया साहस देता है। ऐसा कोई संकल्प नहीं है जिसे पूरा न किया जा सके, ऐसा कोई लक्ष्य नहीं है जिसे हम भारतीय हासिल न कर सकें। हमें एक ऐसे राष्ट्र का निर्माण करना है जो ज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के आधार पर शीर्ष पर हो।’’
उन्होंने कहा कि सदियों से दुनिया भारत की समृद्धि की कहानियां सुनती रही है।
उन्होंने कहा, ‘‘कुछ ही सदियों पहले भारत वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक-चौथाई हिस्सा था।’’
मोदी ने कहा, ‘‘जब बंकिम बाबू ने वंदे मातरम की रचना की थी तब भारत अपने उस स्वर्णिम दौर से बहुत दूर जा चुका था। विदेशी आक्रमणों, लूटपाट और शोषणकारी औपनिवेशिक नीतियों ने देश को गरीबी और भुखमरी से ग्रस्त कर दिया था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इसके बावजूद बंकिम बाबू ने ऐसे समृद्ध भारत के दृष्टिकोण का आह्वान किया जो इस विश्वास से प्रेरित था कि चाहे कितनी भी बड़ी चुनौतियां क्यों न हों, भारत अपने स्वर्णिम युग को पुनर्जीवित कर सकता है और इस प्रकार उन्होंने वंदे मातरम का नारा दिया।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि औपनिवेशिक काल के दौरान अंग्रेजों ने भारत को नीचा और पिछड़ा बताकर अपने शासन को सही ठहराने की कोशिश की।
उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम’ की पहली पंक्ति ने ही इस दुष्प्रचार को जबरदस्त तरीके से ध्वस्त करने का काम किया।
मोदी ने कहा, ‘‘इसलिए ‘वंदे मातरम’ केवल आजादी का गीत नहीं है - इसने लाखों भारतीयों के सामने स्वतंत्र भारत की एक झलक- 'सुजलाम सुफलाम भारत' का सपना भी पेश किया।’’
प्रधानमंत्री ने कहा कि जो लोग राष्ट्र को मात्र एक भू-राजनीतिक इकाई के रूप में देखते हैं, उन्हें राष्ट्र को मां मानने का विचार आश्चर्यजनक लग सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन भारत अलग है। भारत में, मां जन्म देने वाली, पालन-पोषण करने वाली होती है और जब उसके बच्चे खतरे में होते हैं तो वह बुराई का नाश करने वाली भी होती है।’’
मोदी ने ‘वंदे मातरम’ की पंक्तियों का हवाला देते हुए इस बात पर जोर दिया कि मां भारती में अपार शक्ति है जो विपत्ति में हमारा मार्गदर्शन करती है और शत्रुओं का नाश करती है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्र को माता और माता को शक्ति की दिव्य प्रतिमूर्ति मानने की धारणा ने एक ऐसे स्वतंत्रता आंदोलन को जन्म दिया जिसमें पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान रूप से शामिल करने का संकल्प लिया गया।
उन्होंने कहा कि इस दृष्टिकोण ने भारत को एक बार फिर एक ऐसे राष्ट्र का सपना देखने में सक्षम बनाया जहां महिला शक्ति राष्ट्र निर्माण में सबसे आगे खड़ी हो।
यह कार्यक्रम सात नवंबर 2025 से सात नवंबर 2026 तक मनाए जाने वाले एक साल के राष्ट्रव्यापी स्मरणोत्सव की औपचारिक शुरुआत है। इस स्मरणोत्सव में उस कालजयी रचना के 150 वर्ष पूरे होने का जश्न मनाया जाएगा जिसने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को प्रेरित किया और राष्ट्रीय गौरव एवं एकता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई।
बंकिम चंद्र चटर्जी ने सात नवंबर 1875 को अक्षय नवमी के अवसर पर राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ की रचना की थी।
‘वंदे मातरम’ पहली बार साहित्यिक पत्रिका ‘बंगदर्शन’ में चटर्जी के उपन्यास ‘आनंदमठ’ के एक भाग के रूप में प्रकाशित हुआ था।
भाषा
वैभव