दुर्लभ रोग के मरीजों ने सीजेआई को लिखा पत्र, आगामी सुनवाई में स्थायी वित्त पोषण पर विचार का अनुरोध
धीरज माधव
- 05 Nov 2025, 06:32 PM
- Updated: 06:32 PM
नयी दिल्ली, पांच नवंबर (भाषा)देश भर के दुर्लभ रोग रोगियों और उनके समर्थक समूहों ने प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को बच्चों और युवा वयस्कों की ओर से पत्र लिखा है और सात नवंबर को उच्चतम न्यायालय में होने वाली सुनवाई में स्थायी वित्तपोषण सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है।
उन्होंने पत्र में कहा कि प्रशासनिक देरी और राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति (एनपीआरडी) 2021 के तहत प्रतिबंधात्मक एकमुश्त वित्त पोषण सीमा के कारण सैकड़ों बच्चों को इलाज से वंचित किया जा रहा है।
नीति के मुताबिक चिह्नित दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए प्रति मरीज 50 लाख रुपये तक की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। यह सहायता देश भर में चिह्नित 12 उत्कृष्टता केंद्रों में से किसी में भी पंजीकृत मरीजों को उनके इलाज के लिए प्रदान की जाती है।
पत्र में कहा गया, ‘‘पिछले दो वर्षों में ही 50 लाख रुपये की निर्धारित सीमा समाप्त होने के बाद लगभग 60 मरीज़ों की मृत्यु हो गई है और 55 से ज्यादा मरीज उत्कृष्टता केंद्रों में पंजीकृत होने और स्वीकृत जीवन रक्षक उपचारों के लिए पात्र होने के बावजूद महीनों तक इलाज के बिना रह गए हैं। अगर तत्काल हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो साल के अंत तक यह संख्या 100 से ज्यादा हो जाएगी।’’
इसमें कहा गया कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने पिछले साल चार अक्टूबर को अपने आदेश में कहा था कि 974 करोड़ रुपये के आवंटन के साथ ‘दुर्लभ रोगों के लिए राष्ट्रीय कोष’ की स्थापना की जाए ताकि अधिकतम सीमा को हटाया जा सके और निर्बाध चिकित्सा सुनिश्चित की जा सके।
पत्र में कहा गया है कि इस आदेश को लागू करने के बजाय, स्वास्थ्य मंत्रालय ने पहले ही विशेष अनुमति याचिका दायर कर दी, जिससे मरीजों को मिलने वाली राहत रोक दी गई।
पत्र में खेद व्यक्त किया गया कि यह मामला लगभग एक वर्ष से लंबित है, जबकि लोगों की जानें जा रही हैं।
लाइसोसोमल स्टोरेज डिसऑर्डर सपोर्ट सोसाइटी ऑफ इंडिया (एलएसडीएसएस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मंजीत सिंह ने कहा कि प्रत्येक सप्ताह की देरी एक अपूरणीय क्षति है। उन्होंने कहा, ‘‘हम सहानुभूति की मांग नहीं कर रहे हैं, हम उच्च न्यायालय के आदेश के कार्यान्वयन का अनुरोध कर रहे हैं जो हमारे बच्चों के सम्मान के साथ जीने के अधिकार को बरकरार रखता है।’’
कोलकाता की गौचर मरीज़ अद्रिजा (6) के पिता जयंत मुदी ने कहा, ‘‘जब मेरी बेटी का इलाज चल रहा था, तब उसकी सेहत में काफी सुधार हुआ था। इलाज बंद होने के बाद से उसकी हालत दिन-ब-दिन बिगड़ती जा रही है। हमारे बच्चों को जीने का मौका मिलना चाहिए।’’
दिल्ली के अब्दुल रहमान (10) के पिता अबुल कलाम ने कहा, ‘‘मेरे बेटे का इलाज सितंबर 2024 में बंद है। उसकी हालत बिगड़ती जा रही है और हम असहाय हैं क्योंकि प्रक्रिया लंबी खिंच रही है। हम बस अपने बच्चों के जीने का मौका चाहते हैं।’’
तमिलनाडु की दुर्लभ रोग सहायता सोसाइटी के सदस्य राजा मुरुगप्पन ने जोर देकर कहा, ‘‘50 लाख रुपये की सीमा का मतलब कभी भी मौत की सजा नहीं थी। हम उच्चतम न्यायालय और प्रधानमंत्री से अपील करते हैं कि वे इन परिवारों की उम्मीदों को बनाए रखें।’’
भाषा धीरज