संविदा पर रेलवे सुरक्षा आयोग के प्रमुख की नियुक्ति : विशेषज्ञों ने उठाए सवाल
अविनाश दिलीप
- 04 Nov 2025, 08:11 PM
- Updated: 08:11 PM
(जीवन प्रकाश शर्मा)
नयी दिल्ली, चार नवंबर (भाषा) विशेषज्ञों के एक वर्ग ने मुख्य रेलवे सुरक्षा आयुक्त की संविदा आधार पर नियुक्ति की आलोचना करते हुए इसे ‘मनमाना’ कदम बताया और कहा कि सरकार के कदम से इस वैधानिक पद की गरिमा को ठेस पहुंच सकती है।
रेलवे सुरक्षा आयोग, नागर विमानन मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में एक वैधानिक निकाय है, जो रेल दुर्घटनाओं की स्वतंत्र रूप से जांच करता है।
संपर्क किए जाने पर, मंत्रालय ने इस मुद्दे पर पूछे गए प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया।
देश भर में रेल संचालन को नौ क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, ताकि प्रत्येक रेलवे सुरक्षा आयुक्त (सीआरएस) के अधिकार क्षेत्र को परिभाषित किया जा सके।
नागर विमानन मंत्रालय ने 31 अक्टूबर, 2025 को, जिस दिन मुख्य रेल सुरक्षा आयुक्त सेवानिवृत्त हुए, एक अधिकारिक आदेश जारी किया, जिसमें उन्हें एक नवंबर, 2025 से उसी पद पर संविदा आधार पर पुनः नियुक्त किया गया।
आदेश में कहा गया है, ‘‘नियुक्ति संबंधी मंत्रिमंडलीय समिति (एसीसी) द्वारा जनक कुमार गर्ग को संविदा आधार पर मुख्य रेल सुरक्षा आयुक्त के रूप में पुनः नियुक्त करने के लिए स्वीकृति दी जाती है। यह नियुक्ति एक नवंबर 2025 से एक वर्ष की अवधि के लिए या अगले आदेश तक, जो भी पहले हो, लागू होगी...।’’
रेलवे बोर्ड के पूर्व सदस्य (इंजीनियरिंग) सुबोध जैन ने कहा कि सरकार को ‘‘सेवानिवृत्ति के बाद किसी व्यक्ति को रेल सुरक्षा आयुक्त के पद पर संविदा आधार पर पुनः नियुक्त करने के कारणों को स्पष्ट करना चाहिए।’’
जैन ने कहा कि यह कोई कार्यकारी पद नहीं, बल्कि वैधानिक निकाय है और इसकी स्वतंत्रता सर्वोपरि है। उन्होंने कहा कि इस तरह के मनमाने फैसले आयोग की ईमानदारी से समझौता करने के समान हैं।
वरिष्ठ रेलवे अधिकारियों ने कहा कि सीआरएस से एक ईमानदार और उत्कृष्ट तकनीकी ज्ञान वाला व्यक्ति होने की उम्मीद की जाती है। उन्होंने कहा कि आयोग को रेलवे के साथ-साथ रेलवे बोर्ड के कार्यों का भी ‘ऑडिट’ करना होता है।
वंदे भारत परियोजना का नेतृत्व करने वाले सुधांशु मणि ने कहा कि यह कदम स्थापित मानदंडों की अवहेलना करता है और इससे आयोग की विश्वसनीयता प्रभावित होगी।
उन्होंने कहा, ‘‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार ने सेवानिवृत्त होने वाले अधिकारियों को संविदा पर पुनः नियुक्त करने की अपनी प्रवृत्ति को बरकरार रखते हुए सीआरएस के वैधानिक कार्यालय तक बढ़ा दिया है।
नियमों के अनुसार, इस पद के लिए नियुक्ति वरिष्ठता के आधार पर उन सीआरएस में से की जाती है, जिनके पास सीआरएस के रूप में कम से कम तीन साल का कार्य अनुभव होना चाहिए।
एक वरिष्ठ रेलवे अधिकारी ने कहा, ‘‘दक्षिणी सर्किल के सीआरएस एएम चौधरी, सभी सीआरएस में सबसे वरिष्ठ हैं और उन्होंने इस पद पर तीन साल का कार्यकाल भी पूरा कर लिया है। इसलिए, वह सभी में सबसे पात्र थे, लेकिन मंत्रालय ने उनकी उम्मीदवारी को नजरअंदाज कर दिया और गर्ग को फिर से सीसीआरएस नियुक्त कर दिया।’’
एक अन्य विशेषज्ञ ने कहा, ‘‘यह लगभग वैसा ही है जैसे कोई न्यायाधीश मुख्य न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हो और फिर उन्हें उसी पद पर संविदा आधार पर नियुक्त कर दिया जाए। क्या इससे पूरी न्यायिक व्यवस्था की गरिमा प्रभावित नहीं होती?’’
भाषा अविनाश