डकैती के 30 साल पुराने मामले में अदालत ने नौ ‘लापता’ आरोपी बरी किये
राजकुमार दिलीप
- 26 Jul 2025, 06:25 PM
- Updated: 06:25 PM
ठाणे, 26 जुलाई (भाषा) महाराष्ट्र के ठाणे में एक स्कूल में कथित तौर पर डकैती करने पर नौ लोगों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने के तीन दशक बाद, एक जिला अदालत ने उन सभी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि उनका अभी तक पता नहीं चल पाया है और मौजूद सबूत उनके अपराध को साबित करने के लिए ‘अपर्याप्त’ हैं।
कल्याण में जिला एवं अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पी आर अष्टुरकर ने 23 जुलाई को यह आदेश पारित किया।
अभियोजन पक्ष ने कहा कि 1995 में 21 जून को तड़के तीन- चार नकाबपोश व्यक्ति अंबरनाथ में चौकीदार के साथ मारपीट करने एवं उसे बांध देने के बाद कार्मेल इंग्लिश स्कूल में घुस गये थे।
अभियोजन पक्ष के मुताबिक, हमलावरों ने ‘सिस्टर्स (नन)’ को धमकाया था तथा उनसे चाबियां और पैसे मांगे थे। बाद में वे 13,000 रुपये नकद लेकर भाग गये थे।
अभियोजन पक्ष ने बताया कि सुबह एक स्कूल चालक ने देखा कि चौकीदार घायल पड़ा है और ‘सिस्टर्स’ एक कमरे में बंद हैं।
इसके बाद नौ लोगों - जालंधरसिंह भरतसिंह दुधानी, कब्जासिंह गुरुचरणसिंह दुधानी, संजूसिंह भगतसिंह सिकालकर, गब्बरसिंह टाक, अंगारसिंह टाक, गगासिंह टाक, तक्कुसिंह अजीतसिंह कल्याणी, पिस्तुलसिंह ईश्वरसिंह कल्याणी और जंजीरसिंह मानसिंह टाक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गयी थी।
उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराएं 395 (डकैती) और 342 (गलत तरीके से बंधक बनाना) लगायी गयी थीं।
अपने आदेश में, अदालत ने कहा,‘‘मैंने रिकॉर्ड का अवलोकन किया है। पूरा रिकार्ड बहुत बुरी स्थिति में है। इससे यह भी पता चलता है कि इस अपराध के होने से इस मामले के अदालत में चलने तक आरोपी अनुपस्थित रहे और स्थायी एनबीडब्ल्यू (गैर-जमानती वारंट) जारी होने के बावजूद, उनका पता नहीं लगाया जा सका।’’
अदालत ने कहा, ‘‘पुराने मामलों के निपटारे के उच्च न्यायालय के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए, इस अदालत ने भी आरोपियों की उपस्थिति सुनिश्चित करने का प्रयास किया, लेकिन वह व्यर्थ गया। आरोपियों के विरुद्ध आरोप भी तय नहीं हो सके। इसने कहा कि अभियोजन पक्ष भी किसी गवाह की उपस्थिति सुनिश्चित नहीं कर सका और इसलिए, 16 जुलाई, 2025 को ‘क्लोज़िंग पुर्सिस’ (समाप्ति शपथपत्र) दाखिल किया गया।’’
अदालत ने कहा, ‘‘...यदि मामले को और भी लंबित रखा जाए, तो भी अभियोजन पक्ष द्वारा किसी गवाह की उपस्थिति सुनिश्चित करने की संभावना बहुत कम है। किसी भी गवाह का पता नहीं है। उपलब्ध साक्ष्य किसी काम के नहीं हैं। इसलिए, मेरा मानना है कि अभियोजन पक्ष आरोपियों के विरुद्ध लगाए गए आरोप को साबित करने में विफल रहा है, वह भी संदेह से परे।’’
भाषा राजकुमार