न्यायालय ने नाबालिग से यौन उत्पीड़न मामले में दोषी की सजा को आजीवन कारावास में बदला
जितेंद्र दिलीप
- 25 Jul 2025, 06:35 PM
- Updated: 06:35 PM
नयी दिल्ली, 25 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने एक नाबालिग लड़की के यौन उत्पीड़न मामले में शुक्रवार को आरोपी की दोषसिद्धि को बरकरार रखा, लेकिन उसकी सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया।
दोषी को पहले शेष जीवन तक कैद की सजा सुनाई गयी थी, जिसे बदलकर आजीवन कारावास कर दिया गया।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने इस दलील को उचित पाया कि अपराध मई 2019 में हुआ था, इसलिए यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पॉक्सो) की धारा 6 का संशोधित प्रावधान इस मामले में लागू नहीं हो सकता।
धारा 6 गंभीर यौन हमले के लिए दंड से संबंधित है।
पीठ ने कहा कि अधिनियम की धारा 6 का संशोधित प्रावधान 16 अगस्त, 2019 को लागू हुआ था।
अदालत ने कहा कि 2019 के संशोधन से पहले धारा 6 में न्यूनतम 10 वर्ष और अधिकतम आजीवन कारावास की सजा के साथ-साथ जुर्माने का प्रावधान था।
पीठ ने संविधान के अनुच्छेद 20(1) का हवाला देते हुए कहा, "अनुच्छेद 20(1) के तहत कठोर दंड को पिछली तारीख से लागू करने पर संवैधानिक रोक स्पष्ट और पूर्ण है।"
संविधान का अनुच्छेद 20(1) अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण से संबंधित है।
पीठ ने पाया कि अधीनस्थ न्यायालय ने धारा 6 में 2019 के संशोधन द्वारा लागू की गई बढ़ी हुई सजा को प्रभावी रूप से लागू किया, जिससे दोषी को अपराध के समय कानून के तहत अनुमेय सजा से अधिक सजा मिली।
असंशोधित धारा 6 के तहत, अधिकतम अनुमेय सजा आजीवन कारावास थी, न कि शेष जीवन तक कैद।
शीर्ष अदालत ने कहा, “इसलिए हम पॉक्सो अधिनियम की धारा 6 के तहत अपीलकर्ता की दोषसिद्धि को बरकरार रखते हुए उसकी सजा को असंशोधित कानून के तहत कठोर आजीवन कारावास में संशोधित करते हैं और शेष जीवन तक कैद की सजा को रद्द करते हैं।”
न्यायालय ने हालांकि दोषी पर लगाया गया 10,000 रुपये का जुर्माना बरकरार रखा।
शीर्ष अदालत ने यह फैसला छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के सितंबर 2023 के आदेश के खिलाफ अपीलकर्ता की अर्जी पर सुनाया।
आजीवन कारावास की सजा में दोषी को जीवन भर के लिए जेल भेजा जाता है, लेकिन यह जरूरी नहीं कि वह मृत्यु होने तक कारावास में ही रहेगा। भारत समेत कई देशों में आजीवन कारावास का मतलब होता है कम से कम 14 साल की सजा, जिसके बाद अदालत या सरकार रिहाई पर विचार कर सकती है। इसमें पैरोल या माफ़ी का विकल्प होता है।
वहीं, शेष जीवन तक के लिये कैद की सजा का मतलब है कि अपराधी को मृत्यु होने तक जेल में ही रहना पड़ेगा। इसमें पैरोल, माफी या रिहाई का विकल्प नहीं होता। यह सजा अधिक गंभीर और जघन्य अपराधों में दी जाती है।
भाषा जितेंद्र