न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को पद से हटाने का प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाएगा
सुभाष वैभव
- 25 Jul 2025, 06:20 PM
- Updated: 06:20 PM
नयी दिल्ली, 25 जुलाई (भाषा) भ्रष्टाचार के एक संदिग्ध मामले में आरोप का सामना कर रहे न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को न्यायाधीश के पद से हटाने के लिए सत्तापक्ष और विपक्ष का एक संयुक्त प्रस्ताव लोकसभा में लाया जाएगा क्योंकि राज्यसभा में इसी तरह के प्रस्ताव के लिए विपक्षी दलों का नोटिस विचारार्थ स्वीकार नहीं किया गया था।
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रीजीजू ने शुक्रवार को कहा कि न्यायपालिका में कथित भ्रष्टाचार के मामले में, एकजुट होकर आगे बढ़ने का सभी राजनीतिक दलों ने सर्वसम्मति से निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि लोकसभा इस प्रस्ताव पर विचार करेगी, जिस पर सत्तारूढ़ गठबंधन (राजग) और विपक्ष के 152 सांसदों ने हस्ताक्षर किए हैं।
आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि राज्यसभा में इसी तरह के प्रस्ताव के लिए विपक्ष के नोटिस को उच्च सदन में विचारार्थ स्वीकार नहीं किया गया। उच्च सदन को यह उसी दिन मिला था, जब सत्तापक्ष और विपक्ष का संयुक्त नोटिस 21 जुलाई को लोकसभा को सौंपा गया था।
इसके साथ ही, विपक्षी दलों के 63 राज्यसभा सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित नोटिस के भविष्य से संबंधित अटकलों का दौर खत्म हो गया है। तत्कालीन राज्यसभा सभापति जगदीप धनखड़ ने उच्च सदन में इस नोटिस के मिलने का जिक्र किया था। इससे बाद सरकार की सक्रियता का और घटनाक्रम का एक ऐसा सिलसिला शुरू हुआ, जिसके चलते उसी रात (सोमवार को) उन्हें अचानक उपराष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा।
रीजीजू ने कहा कि सभी राजनीतिक दलों ने इस बात पर सहमति जताई कि न्यायमूर्ति वर्मा को हटाने का फैसला संयुक्त रूप से लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह कार्यवाही लोकसभा में शुरू की जाएगी और फिर न्यायाधीश (जांच) अधिनियम के अनुसार राज्यसभा में पेश की जाएगी।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें किसी भी भ्रम में नहीं रहना चाहिए, न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा को (पद से) हटाने की कार्यवाही लोकसभा में शुरू होगी।’’
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश वर्मा के खिलाफ आरोप की जांच के लिए लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला द्वारा तीन सदस्यीय अन्वेषण समिति की घोषणा किये जाने की उम्मीद है।
धनखड़ ने 21 जुलाई को राज्यसभा में न्यायाधीश (जांच) अधिनियम का हवाला देते हुए कहा था कि जब संसद के दोनों सदनों में एक ही दिन प्रस्ताव का नोटिस सौंपा जाता है, तो न्यायाधीश के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच के लिए लोकसभा अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति द्वारा एक समिति गठित की जाएगी।
हालांकि, आधिकारिक सूत्रों ने दावा किया कि नोटिस को उच्च सदन में विचारार्थ स्वीकार नहीं किया गया।
राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश अब उच्च सदन के कार्यवाहक पीठासीन अधिकारी हैं तथा इस मुद्दे पर सरकार और संसद के भीतर विचार-विमर्श में शामिल रहे हैं।
तीन सदस्यीय समिति में प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) या उच्चतम न्यायालय के एक न्यायाधीश, किसी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होंगे।
राष्ट्रीय राजधानी में न्यायमूर्ति वर्मा के आवास के बाहरी हिस्से में स्थित एक स्टोररूम में लगी आग में अधजले नोटों की गड्डियां बरामद हुई थीं, जिसके बाद शीर्ष अदालत के तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने तीन न्यायाधीशों की एक समिति गठित की थी, जिसने उन्हें (न्यायमूर्ति वर्मा को) अभ्यारोपित किया था।
इस घटना के बाद, न्यायमूर्ति वर्मा का स्थानांतरण दिल्ली उच्च न्यायालय से इलाहाबाद उच्च न्यायालय में कर दिया गया। वहीं, न्यायमूर्ति वर्मा ने इस्तीफा देने संबंधी तत्कालीन सीजेआई खन्ना के सुझाव को मानने से इनकार कर दिया, जिसके बाद तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश ने समिति की रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजकर उन्हें पद से हटाने की सिफारिश की।
हालांकि, वर्मा ने खुद के निर्दोष होने का दावा किया है और समिति के निष्कर्षों के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया है।
भाषा
सुभाष