करगिल युद्ध: सलमान के चुटकुलों पर सैनिकों के ठहाके; घायल सैनिकों को देख सुनील के बहे थे आंसू
जितेंद्र नरेश
- 25 Jul 2025, 06:00 PM
- Updated: 06:00 PM
नयी दिल्ली, 25 जुलाई (भाषा) वर्ष 1999 में करगिल युद्ध के दौरान घायल सैनिक अस्पताल में उनसे मिलने आए बालीवुड अभिनेताओं सलमान खान, सुनील शेट्टी, रवीना टंडन और शबाना आजमी जैसे कलाकारों को देखकर हैरान रह गये थे। एक नई किताब में इस किस्से का जिक्र किया गया है।
बॉलीवुड कलाकारों का एक समूह युद्ध के दौरान सैनिकों का मनोबल बढ़ाने के लिए करगिल पहुंचा था और घायल सैनिकों से अस्पताल में जाकर मुलाकात की थी।
भारत इस शनिवार को करगिल विजय दिवस की 26वीं वर्षगांठ मना रहा है।
डा. अरूप रतन बसु द्वारा लिखित ‘द करगिल वॉर: सर्जन्स टेस्टिमनी’ में युद्ध के दौरान सेना की एक चिकित्सा इकाई के अंदर के प्रत्यक्ष विवरण प्रस्तुत करती है।
पुस्तक में लगातार गोलाबारी के बीच घायल सैनिकों की सर्जरी करने से लेकर हवाई मार्ग के जरिये फिल्मी सितारों को सैनिकों से मिलने के लिए भेजने तक की कहानी शामिल है।
चिकिस्ता इकाई में उस समय मौजूद रहे डॉक्टर, सलमान खान के मजेदार चुटकुलों, जावेद जाफरी के नृत्य, सुनील शेट्टी की नम आंखों, पूजा बत्रा की इस मुलाकात में उदासीनता और अभिनेताओं के साथ तस्वीरें खिंचवाने की होड़ में लगे सैनिकों के बीच उत्साह का माहौल याद करते हैं।
डॉक्टर ने अपनी पुस्तक में लिखा है, “सुनील शेट्टी अंदर आए, उनके बाद कई और हस्तियां आईं, जिनमें गीतकार जावेद अख्तर और उनकी पत्नी व अभिनेत्री शबाना आजमी भी शामिल थीं। मैंने शरद कपूर को भी पहचान लिया, जो टेलीविज़न पर दिखाई देते थे लेकिन उतने मशहूर नहीं थे।”
उन्होंने उस किस्से के बारे में लिखा, “फिल्मी सितारे करगिल पहुंच चुके थे। उनके आने का मकसद घायल सैनिकों का मनोबल बढ़ाना था। उन्होंने मरीजों का हालचाल जानना शुरू किया और मैं उनके साथ वार्ड में गया था।”
किताब के अनुसार,‘‘ शबाना, अख्तर और अभिनेता विनोद खन्ना ने घायल सैनिकों के प्रति वास्तविक चिंता दिखाई जबकि सलमान खान, रवीना टंडन, जावेद जाफरी और पूजा बत्रा जैसे अन्य लोग रोजमर्रा की ही तरह बातचीत करते दिखे।
उदाहरण के लिए, सलमान खान पूरी मुलाकात के दौरान फालतू के चुटकुले सुनाते रहे।
डॉक्टर ने लिखा है, “उन्हें (सलमान) यह भी नहीं पता था कि वे करगिल में हैं या द्रास या फिर लेह में। मुझे नहीं लगता कि इससे उन्हें कोई फर्क पड़ा। रवीना टंडन हर मरीज से एक ही बात दोहराती रहीं, ‘हैलो भैया, कैसे हो? क्या तुमने मुझे पहचाना? मैं रवीना हूं।’ जब उन्होंने यह बात आंशिक रूप से बेहोश मरीज से पूछी, तो उस सैनिक ने बस अपनी आंखें बंद कर लीं।”
लेखक ने किताब में लिखा, “जावेद जाफरी अपने ब्रेकडांस से अस्पताल के कर्मचारियों को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे थे जबकि पूजा बत्रा इस पूरे मामले में बिल्कुल भी दिलचस्पी नहीं ले रही थीं। वह वहां से जाने को आतुर लग रही थीं। मुझे लगा कि शायद उन्हें युद्ध क्षेत्र में होने का डर था।”
उन्होंने पुस्तक में लिखा कि एक चीज जो अच्छी थी वह ये कि फिल्मी सितारों को सामने देखकर सैनिकों के चेहरों पर उत्साह साफ झलक रहा था।
सर्जन ने लिखा कि इन मशहूर हस्तियों की मौजूदगी की खबर पूरे अस्पताल में तेजी से फैल गई और यहां तक कि क्लर्क, धोबी, रसोइया और अन्य लोग, जो पहले कभी वार्ड में कदम तक नहीं रखते थे,वे भी तस्वीरें लेने के लिए वहां पहुंच गए।
कुछ सैनिकों से जब उनके युद्धक्षेत्र के अनुभवों के बारे में पूछा गया, तो वे अपनी कहानियों में ‘थोड़ा सा मसाला’ डालकर सुनाते हुए बेहद खुश दिखाई दिये।
लेखक ने किताब में लिखा, “मुझे यह बात पता थी क्योंकि उन्होंने मुझे कुछ दिन पहले भी उन्हीं घटनाओं के बारे में बताया था लेकिन बिना किसी तड़के के। ज्यादातर सैनिकों ने मोर्चे पर वापस जाकर लड़ने की इच्छा जताई। ऐसा लग रहा था कि उनका जज्बा सितारों को भी बहुत प्रभावित कर रहा था। मैंने देखा कि सुनील शेट्टी आंखों से आंसू भी पोंछ रहे थे।”
जो सैनिक मामूली रूप से घायल थे, वे भी अस्पताल में आकर मस्ती करने लगे। और जब कमांडिंग ऑफिसर ने घायल सैनिकों को फोटो खिंचवाने के लिए एक बिस्तर से दूसरे बिस्तर पर कूदते देखा, तो तुरंत उन्हें छुट्टी देने का आदेश दिया।
मशहूर हस्तियों के चले जाने के बाद भी उत्साह बना रहा। लेखक ने पुस्तक में लिखा, “सैनिक अपनी छाती तानकर इधर-उधर घूम रहे थे, मानो उन्होंने अभी-अभी किसी हिट फिल्म में काम किया हो।”
उन्होंने लिखा, “जिन लोगों ने सलमान और रवीना टंडन से हाथ मिलाया था, उन्होंने कहा कि वे कुछ दिनों तक हाथ नहीं धोएंगे।”
डॉ. अरूप रतन बसु द्वारा लिखित ‘द करगिल वॉर: सर्जन्स टेस्टिमनी’ प्रत्यक्ष अनुभव पर आधारित है और वह 19 मई से 24 जुलाई, 1999 के बीच ‘करगिल फील्ड अस्पताल’ में एकमात्र सैन्य सर्जन थे।
इस मुश्किल दौर के दौरान बसु ने 250 से ज्यादा सर्जरी की थीं और इनमें दुश्मन देश का एक सैनिक भी था, जिसकी सर्जरी उन्होंने की थी।
भाषा जितेंद्र