हवा में तैरते बच्चे, शून्य-गुरुत्वाकर्षण के बीच जन्म: अंतरिक्ष में क्या हो सकता है
सिम्मी नरेश
- 23 Jul 2025, 02:51 PM
- Updated: 02:51 PM
(अरुण विवियन होल्डन, लीड्स विश्वविद्यालय)
लीड्स (ब्रिटेन), 23 जुलाई (द कन्वरसेशन) जैसे-जैसे मंगल मिशन संबंधी योजनाओं में तेजी आ रही है, वैसे-वैसे यह सवाल भी उठ रहा है कि मानव शरीर वहां के अनुसार कैसे स्वयं को ढालेगा?
क्या अंतरिक्ष में गर्भधारण करना और इसका सुरक्षित रहना संभव है? और पृथ्वी से इतनी दूर पैदा हुए बच्चे का क्या होगा?
हममें से अधिकतर लोग जन्म से पहले जिन जोखिमों से गुजरे हैं, उनके बारे में शायद ही कभी सोचते हैं। उदाहरण के लिए लगभग दो-तिहाई मानव भ्रूण जीवित नहीं रह पाते और अधिकतर भ्रूण शुरुआती कुछ सप्ताह में अक्सर महिला को यह पता लगने से पहले ही नष्ट हो जाते हैं कि वह गर्भवती है।
गर्भावस्था को जैविक अहम पड़ावों की एक श्रृंखला के रूप में समझा जा सकता है। हर एक पड़ाव को सही क्रम में होना चाहिए और हर एक पड़ाव के सफल होने की एक निश्चित संभावना होती है। पृथ्वी पर इन संभावनाओं का अनुमान क्लीनिकल अनुसंधान और जैविक मॉडल का उपयोग करके लगाया जा सकता है। मेरा नवीनतम शोध इस बात का पता लगाता है कि ये पड़ाव अंतरग्रहीय अंतरिक्ष की चरम स्थितियों से कैसे प्रभावित हो सकते हैं।
सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण यानी अंतरिक्ष उड़ान के दौरान अनुभव की जाने वाली लगभग भारहीनता की स्थिति गर्भधारण को अधिक कठिन बना देगी, लेकिन भ्रूण के बनने के बाद गर्भवती रहने में शायद अधिक बाधा नहीं डालेगी।
हालांकि शून्य गुरुत्वाकर्षण में जन्म देना और नवजात शिशु की देखभाल करना कहीं अधिक मुश्किल होगा। अंतरिक्ष में आखिरकार कुछ भी स्थिर नहीं रहता। तरल पदार्थ तैरते रहते हैं। लोग भी तैरते हैं। इससे बच्चे को जन्म देना और उसकी देखभाल करना पृथ्वी की तुलना में कहीं अधिक मुश्किल और जटिल प्रक्रिया बन जाती है।
साथ ही भ्रूण गर्भ के अंदर पहले से ही सूक्ष्म-गुरुत्वाकर्षण जैसी स्थिति में विकसित हो रहा होता है। यह गर्भाशय के अंदर ‘एमनियोटिक द्रव’ में सुरक्षित एवं गद्देदार अवस्था में तैरता रहता है। दरअसल, अंतरिक्ष यात्री भी भारहीनता का अनुभव करने के लिए तैयार किए गए पानी के टैंकों में अंतरिक्ष-चहलकदमी का प्रशिक्षण लेते हैं। इस तरह गर्भ भ्रूण को पहले से ही सूक्ष्म-गुरुत्वाकर्षण जैसी स्थिति का अनुभव देता है।
विकिरण
पृथ्वी की सुरक्षात्मक परतों के बाहर एक और भी हानिकारक खतरा है: ब्रह्मांडीय किरणें। ये उच्च ऊर्जा वाले कण हैं जो अंतरिक्ष में लगभग प्रकाश की गति से दौड़ते हैं। ये ऐसे अणु हैं जो अपने सभी इलेक्ट्रॉन खो चुके होते हैं तथा केवल प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन का घना केंद्रक ही बचता है। जब ये नाभिक मानव शरीर से टकराते हैं तो ये गंभीर कोशिकीय क्षति पहुंचा सकते हैं। कभी-कभी किरण बिना किसी चीज से टकराए सीधे गुजर जाती है लेकिन अगर यह डीएनए से टकराती है तो यह उत्परिवर्तन पैदा कर सकती है जिससे कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
कोशिकाओं के जीवित रहने पर भी विकिरण प्रतिरक्षा प्रणाली पर असर डाल सकता है जिसके कारण रोग प्रतिरोधी प्रणाली ऐसे रसायन छोड़ती है जो स्वस्थ ऊतकों को नुकसान पहुंचा सकते हैं और अंगों के कार्य को बाधित कर सकते हैं।
गर्भावस्था के शुरुआती कुछ सप्ताह में भ्रूण की कोशिकाएं तेजी से विभाजित एवं गतिमान होती हैं और प्रारंभिक ऊतक एवं संरचनाएं बनाती हैं। विकास जारी रखने के लिए भ्रूण को इस नाजुक प्रक्रिया के दौरान जीवित रहना जरूरी है। गर्भावस्था का पहला महीना सबसे संवेदनशील समय होता है।
इस अवस्था में उच्च-ऊर्जा वाली ब्रह्मांडीय किरण का एक भी प्रहार भ्रूण के लिए घातक हो सकता है। भ्रूण हालांकि बहुत छोटा होता है और ब्रह्मांडीय किरणें, खतरनाक होते हुए भी, अपेक्षाकृत दुर्लभ होती हैं इसलिए इस पर सीधा प्रहार असंभव है लेकिन अगर ऐसा हुआ तो गर्भपात होने का खतरा है जिसका संभवत: पता भी नहीं लगेगा।
गर्भावस्था के जोखिम
जैसे-जैसे गर्भावस्था का समय बढ़ता है, जोखिम भी बदलते रहते हैं। जब गर्भरक्त परिसंचरण (मां और भ्रूण को जोड़ने वाला रक्त प्रवाह तंत्र) पहली तिमाही के अंत तक पूरी तरह से विकसित हो जाता है तो भ्रूण तेजी से बढ़ता है। ऐसे में ब्रह्मांडीय किरणों के गर्भाशय की मांसपेशियों से टकराने की संभावना अधिक है जिससे समय से पहले प्रसव हो सकता है।
समय से पूर्व पैदा हुए शिशु की गहन देखभाल के मामले में हालांकि काफी सुधार हुआ है, फिर भी शिशु जितनी जल्दी पैदा होता है, जटिलताओं का जोखिम, खासकर अंतरिक्ष में उतना ही अधिक होता है।
पृथ्वी पर भी गर्भावस्था और प्रसव के दौरान जोखिम होते हैं लेकिन अंतरिक्ष में ये जोखिम और भी बढ़ जाते हैं।
विकास जन्म के साथ ही रुक नहीं जाता। अंतरिक्ष में जन्मा शिशु सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण में बढ़ता रहेगा जिससे उसे शारीरिक समन्वय विकसित करने में बाधा का सामना करना पड़ सकता है। यह समन्वय वे सहज प्रवृत्तियां हैं जो शिशु को अपना सिर उठाना, बैठना और अंततः चलना सीखने में मदद करती हैं: ये सभी गतिविधियां गुरुत्वाकर्षण पर निर्भर करती हैं।
साथ ही विकिरण का खतरा भी खत्म नहीं होता। जन्म के बाद भी शिशु का मस्तिष्क बढ़ता रहता है और ब्रह्मांडीय किरणों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से स्थायी क्षति हो सकती है - जिससे संज्ञानात्मक, स्मृति संबंधी, व्यवहार संबंधी और दीर्घकालिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
भाषा सिम्मी