अंतरराष्ट्रीय अदालत ने महिलाओं पर अत्याचार के लिए तालिबान नेताओं के खिलाफ वारंट जारी किया
एपी आशीष सुरेश
- 09 Jul 2025, 12:03 AM
- Updated: 12:03 AM
द हेग, आठ जुलाई (एपी) अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय (आईसीसी) ने लगभग चार साल पहले सत्ता पर काबिज होने के बाद से महिलाओं और लड़कियों पर अत्याचार किये जाने के आरोप में तालिबान के सर्वोच्च नेता और अफगानिस्तान के उच्चतम न्यायालय के प्रमुख के खिलाफ मंगलवार को गिरफ्तारी वारंट जारी किया।
वारंट में नेताओं पर ‘लिंग, लैंगिक पहचान या अभिव्यक्ति पर तालिबान की नीति का पालन न करने वाले व्यक्तियों को प्रताड़ित’ करने का भी आरोप लगाया गया है। इसमें लड़कियों और महिलाओं के सहयोगी माने जाने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध राजनीतिक आधार पर अत्याचार करने का भी आरोप लगाया गया है।
ये वारंट तालिबान के सर्वोच्च नेता हिबतुल्लाह अखुनजादा और अफगानिस्तान के उच्चतम न्यायालय के प्रमुख अब्दुल हकीम हक्कानी के खिलाफ जारी किए गए हैं।
अदालत के अभियोजन कार्यालय ने वारंट जारी करने के निर्णय को "अफगान महिलाओं और लड़कियों के अधिकारों की एक महत्वपूर्ण पुष्टि और स्वीकृति" कहा।
इसमें कहा गया है कि न्यायाधीशों के फैसले में "उन लोगों के अधिकारों और अनुभवों को भी मान्यता दी गई है, जिन्हें तालिबान ने लैंगिक पहचान या अभिव्यक्ति की अपनी वैचारिक अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं माना है, जैसे कि एलबीजीटीक्यूआई प्लस समुदाय के सदस्य और वे लोग जिन्हें तालिबान लड़कियों और महिलाओं के सहयोगी के रूप में देखता है।"
इस वारंट से कुछ घंटे पहले संयुक्त राष्ट्र द्वारा सोमवार को एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें तालिबान से महिलाओं और लड़कियों पर बढ़ते अत्याचार को रोकने तथा सभी आतंकवादी संगठनों को खत्म करने का आह्वान किया गया था।
तालिबान नेताओं के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी होने से पहले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू सहित अन्य नेताओं के खिलाफ भी गिरफ्तारी वारंट जारी हो चुके हैं।
साल 2021 में अफ़गानिस्तान में सत्ता में लौटने के बाद से, तालिबान ने कठोर कदम उठाते हुए महिलाओं के सार्वजनिक स्थानों पर जाने और लड़कियों के छठी कक्षा से आगे स्कूल जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है। पिछले हफ़्ते, रूस तालिबान की सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता देने वाला पहला देश बन गया।
अदालत ने एक बयान में कहा कि तालिबान ने "अपने फरमानों और आदेशों के ज़रिये लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा, निजता और पारिवारिक जीवन के अधिकारों और आंदोलन, अभिव्यक्ति, विचार, विवेक और धर्म की स्वतंत्रता से गंभीर रूप से वंचित किया है। इसके अलावा, अन्य व्यक्तियों को इसलिए निशाना बनाया गया, क्योंकि यौन अभिरुचि या लैंगिक पहचान की कुछ अभिव्यक्तियों को तालिबान की लिंग संबंधी नीति के साथ असंगत माना गया था।"
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