आपातकाल ने श्रमिक वर्ग को हड़ताल के अधिकार से वंचित कर दिया था: बृंदा करात
वैभव माधव
- 25 Jun 2025, 04:35 PM
- Updated: 04:35 PM
(अंजलि ओझा)
नयी दिल्ली, 25 जून (भाषा) अप्रैल 1976 में आपातकाल के दौरान दिल्ली में बिड़ला कॉटन टेक्सटाइल मिल के प्रबंधन ने अपने प्रत्येक कर्मचारी को दो के बजाय चार करघे चलाने के लिए मजबूर किया था और उनसे अधिक घंटे काम करवाया। उस समय युवा नेता रहीं माकपा सदस्य वृंदा करात ने अपनी नयी किताब में इसका उल्लेख किया है।
‘एन एजुकेशन फॉर रीता’ पुस्तक में 1975-1985 के दशक पर प्रकाश डाला गया है जिसमें वरिष्ठ कम्युनिस्ट नेता ने लिखा है कि आपातकाल को आम तौर पर नागरिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकारों के विनाश के लिए याद किया जाता है, जबकि श्रमिकों के अधिकारों पर हमले को अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की आला नेता करात लिखती हैं कि आपातकाल ने ‘यूनियन बनाने, विरोध करने, हड़ताल करने के मूल अधिकार’ को समाप्त कर दिया।
उन्होंने कहा, ‘‘इस प्रकार इसने श्रमिक वर्गों को उनके कठिन परिश्रम से प्राप्त अधिकारों से वंचित कर दिया।’’
आपातकाल के दौरान, करात को बिड़ला मिल्स की इकाई में और कमला नगर तथा आसपास के क्षेत्रों में श्रमिकों की कॉलोनियों में काम करने की जिम्मेदारी दी गई थी।
बिड़ला कॉटन टेक्सटाइल मिल के मजदूर काम के बढ़ते बोझ और काम के घंटों के बढ़ने के विरोध में 18 अप्रैल, 1976 की रात को हड़ताल पर चले गए।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें गुप्त बैठकें करनी पड़ीं और गुप्त पर्चे बांटने पड़े। हम उन इलाकों में जाते थे जहां हमें पता होता था कि मजदूर वहां से गुजरेंगे और हम वहां पर्चे छोड़ देते थे। मजदूर उन्हें उठाकर चुपके से अपनी जेबों में रख लेते थे। बिड़ला मिल की हड़ताल से पहले हम पर्चे चुपचाप लाते थे और उन्हें हर मशीन पर रख देते थे।’’
उन्होंने कहा कि हड़ताल की पूरी तैयारी ‘भूमिगत’ रहकर की गई थी।
करात ने कहा कि जब लोग आपातकाल के बारे में लिखते हैं ‘‘तो वे वास्तव में इसे मजदूरों के नजरिए से नहीं देखते’’।
उन्होंने कहा कि उस दौर में दिल्ली में झुग्गियों में रहने वाले श्रमिकों को वहां से निकाल दिया गया, उन्हें उनके कार्यस्थल से 30-40 किलोमीटर दूर दिल्ली के बाहरी इलाकों में वैकल्पिक स्थान दिए गए।
माकपा नेता ने राष्ट्रीय राजधानी में वर्तमान स्थिति के बारे में पूछे जाने पर कहा कि उस समय श्रमिकों को एक वैकल्पिक स्थान तो दिया गया था, लेकिन आज तो वहां रहने वाले लोगों को स्थानांतरित किए बिना तोड़फोड़ की जा रही है।
उन्होंने कहा, ‘‘तब और अब जो हुआ, उसके बीच अंतर यह है कि उन्हें पुनर्वासित कर दिया गया था।’’
करात ने नए श्रम कानूनों को नए विधान की आड़ में श्रमिकों के अधिकारों पर ‘बढ़ता हुआ हमला’ बताया और आरोप लगाया कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) संसद में अपने बहुमत का ‘भारत के गरीब और श्रमजीवी लोगों के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है’।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं कहूंगी कि आज यह लोकतांत्रिक अधिकारों पर कहीं अधिक खतरनाक हमला है क्योंकि यह लोकतंत्र की आड़ में हर समय हो रहा है। वर्तमान में जो हो रहा है, संसद, संसद के अधिकार और संसद में विपक्ष के अधिकारों को पूरी तरह से कमजोर किया जा रहा है तथा संसद के कामकाज को ही बदला जा रहा है।’’
भाषा वैभव