ई-कॉमर्स, बाजार-संचालित जीवनशैली मानवीय रिश्तों को नुकसान पहुंचा रही है: संघ नेता होसबोले
प्रशांत माधव
- 24 Jun 2025, 10:41 PM
- Updated: 10:41 PM
मुंबई, 24 जून (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने मंगलवार को कहा कि ई-कॉमर्स और बाजार संचालित जीवनशैली सामाजिक बंधनों को कमजोर कर रही है और मानवीय रिश्तों के मूल सिद्धांतों को बदल रही है।
भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद द्वारा प्रकाशित अशोक मोदक की पुस्तक ‘एकात्म मानववाद: विकास का विशिष्ट प्रतिमान’ पर यहां आयोजित परिचर्चा में होसबोले ने कहा कि भारत कभी भी ऐसी कठोर विचारधाराओं का देश नहीं रहा है जो स्वतंत्र सोच में बाधा डालती हों।
उन्होंने कहा, “बाजार आधारित, सरकार उन्मुख जीवन समाज के लिए हानिकारक है। ई-कॉमर्स इसका ज्वलंत उदाहरण है। इसने रिश्तों को महज लेन-देन तक सीमित कर दिया है।”
अपनी चिंता बताते हुए उन्होंने कहा, “अगर मैं तमिलनाडु के किसी गांव में मोदक की किताब खरीदना चाहता हूं, तो मैं आसानी से ऑनलाइन ऑर्डर कर सकता हूं। यह सुविधाजनक लगता है। मैं भुगतान करता हूं और वे इसे पहुंचा देते हैं। लेकिन क्या यह वास्तव में इतना आसान है? पारंपरिक बाजार लंबे समय से चले आ रहे रिश्तों पर आधारित थे। एक किसान उस व्यापारी से उधार लेता था जो उसे और उसके परिवार को सालों से जानता था। क्या अमेजन कभी उस तरह के भरोसे को समझ पाएगा या दोहरा पाएगा? वहां जुड़ाव नहीं है। हम धीरे-धीरे ऐसे मानवीय संबंधों का सार खो रहे हैं।”
होसबोले ने दावा किया कि अमेरिका में “समाज व्यावहारिक रूप से गायब हो गया है”। उन्होंने कहा कि उस देश में केवल व्यक्ति और राज्य ही बचे हैं।
संघ नेता ने कहा, “कल्याणकारी सरकार और बाजार-केंद्रित जीवन का यह मॉडल स्वस्थ समाज के लिए टिकाऊ नहीं है।”
होसबाले ने प्रकृति और जीवनशैली के प्रति आधुनिक दुनिया के दृष्टिकोण के बारे में भी चिंता जताई। उन्होंने कहा, “हम बिजली के बिना नहीं रह सकते, लेकिन हमें यह सोचना चाहिए कि इसे कुशलतापूर्वक कैसे उत्पन्न किया जाए और इसे हमारे जीवन में इस तरह से एकीकृत किया जाए कि पर्यावरण का संरक्षण हो।”
उन्होंने कहा कि शिक्षा का ध्यान केवल सूचना देने पर नहीं बल्कि मूल्यों को प्रदान करने पर होना चाहिए। उन्होंने कहा कि “एक सुसंगठित समाज के निर्माण के लिए नए ज्ञान का सृजन किया जाना चाहिए।” पुस्तक में मोदक के तर्कों का उल्लेख करते हुए होसबोले ने कहा, “पश्चिमी विश्वदृष्टि व्यक्तिगत अधिकारों, योग्यतम की उत्तरजीविता और प्रकृति के शोषण के इर्द-गिर्द घूमती है। लेकिन हम एक अलग दृष्टिकोण पर चर्चा करते हैं, जो करुणा, चिंता और अनुकूलता पर आधारित है। मनुष्य समाज का हिस्सा है, और समाज प्रकृति के बिना अस्तित्व में नहीं रह सकता।”
उन्होंने आर्थिक सूचकांकों के लिए वैकल्पिक दृष्टिकोण के रूप में भूटान के ‘सकल राष्ट्रीय खुशी मॉडल’ की भी सराहना की। उन्होंने कहा, “मानव और सामाजिक कल्याण एक दूसरे के पूरक हैं। दोनों प्रकृति के बिना अस्तित्व में नहीं रह सकते।”
उन्होंने कहा, “कोई भी समाज केवल अतीत में नहीं जी सकता। लोग इतिहास से सबक और प्रेरणा ले सकते हैं, लेकिन उन्हें भविष्य की ओर भी देखना चाहिए और वर्तमान में पूरी तरह जीना चाहिए। भारत कभी भी केवल अपने लिए नहीं जीया, बल्कि यह हमेशा विश्व की भलाई के लिए अस्तित्व में रहा है।”
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