आपातकाल और रेलवे कर्मचारियों के अनुभव: सभी ट्रेनें चलती थीं समय पर लेकिन कामकाजी घंटे बहुत ज्यादा थे
संतोष नरेश
- 22 Jun 2025, 07:11 PM
- Updated: 07:11 PM
नयी दिल्ली, 22 जून (भाषा) भारत में 50 साल पहले लगाए गए आपातकाल की 21 महीने की अवधि से जुड़ी कई कड़वी यादों के बीच रेलवे के अनुभवी कर्मचारी उस दौर के अपने मिश्रित अनुभवों को याद करते हैं।
वे उस अवधि के दौरान विभिन्न ट्रेन के समय पर चलने से मिलने वाली प्रशंसा, लंबे कामकाजी घंटों से होने वाली कठिनाई और शिकायत निवारण की कोई व्यवस्था नहीं होने का जिक्र करते हैं।
कर्मचारी संघ के अनुभवी नेता शिव गोपाल मिश्रा ने कहा कि ट्रेन सेवाओं में देरी के लिए वरिष्ठ अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया जाता था, इसीलिए ट्रेन के समय से चलने पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता था।
वर्ष 1977 में लखनऊ स्टेशन पर कनिष्ठ अभियंता के पद पर कार्यरत रहे मिश्रा ने कहा, ‘‘मुझे एक घटना याद है, जब काशी विश्वनाथ एक्सप्रेस ट्रेन से जुड़े कमलापति त्रिपाठी (तत्कालीन रेल मंत्री) के सैलून में पानी न होने के कारण कुछ निचले दर्जे के रेलवे कर्मचारियों को निलंबित कर दिया गया था। वे काशी जाते समय अपने निजी कोच में पूजा करते थे, लेकिन एक दिन उनके कोच में पानी नहीं आया।’’
उन्होंने कहा, ‘‘रेल प्रशासन ने कुछ निचले स्तर के कर्मचारियों को कर्तव्य पालन में लापरवाही बरतने के कारण निलंबित कर दिया था। हालांकि, जब मंत्री को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने तुरंत निलंबन रद्द करने का आदेश दिया।’’
मिश्रा के अनुसार, उन दिनों निचले स्तर के अधिकारियों को दंडित करने के बजाय ट्रेन के देरी से चलने पर वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाती थी, जिसके कारण यह सुनिश्चित किया जाता था कि सभी ट्रेन का आगमन और प्रस्थान तय समय पर हो।
फिलहाल ‘ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन’ के महासचिव मिश्रा ने कहा, ‘‘रेलवे में अपने आधिकारिक पद के अलावा, मैं श्रमिक संघ का शाखा सहायक सचिव भी था।’’
मिश्रा ने बताया कि आपातकाल के दौरान अधिकारियों के बीच भ्रष्टाचार सबसे निचले स्तर पर था और साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दिया जाता था।
सेवानिवृत्त लोको पायलट पी. विजयकुमार (जो 1977 में यात्री ट्रेन चलाते थे) ने बताया कि ट्रेन चालकों के लिए कामकाज का कोई निश्चित समय नहीं था और अक्सर वे 14 से 16 घंटे और कभी-कभी 24 घंटे से भी अधिक समय तक ट्रेन चलाते थे।
विजयकुमार ने कहा, ‘‘हम सरकार के साथ बातचीत करने, बैठकें करने या श्रमिकों की मांग उठाने के लिए कुछ भी करने में सक्षम नहीं थे।’’
उन्होंने कहा कि आपातकाल से पहले, लोको पायलटों को 10 घंटे की शिफ्ट देने के लिए सरकार के साथ एक समझौता हुआ था।
भाषा संतोष