अश्लील सामग्री के प्रसारण पर रोक लगाने के अनुरोध वाली याचिका पर केंद्र, अन्य को नोटिस
पारुल नरेश
- 28 Apr 2025, 04:17 PM
- Updated: 04:17 PM
नयी दिल्ली, 28 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोशल मीडिया और ओटीटी मंचों पर अश्लील सामग्री के प्रसारण पर रोक लगाने के लिए उचित कदम उठाने का निर्देश देने के अनुरोध वाली याचिका पर केंद्र सरकार और अन्य को सोमवार को नोटिस जारी करते हुए जवाब तलब किया।
न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने कहा कि इस याचिका में चिंता के एक बड़े मुद्दे को उठाया गया है, जिससे निपटने के उपाय करना या तो विधायिका का काम है या कार्यपालिका का।
न्यायमूर्ति गवई ने न्यायपालिका पर हाल-फिलहाल में हुए हमलों का स्पष्ट संदर्भ देते हुए कहा, “यह हमारे अधिकार क्षेत्र में नहीं आता। वैसे भी, आरोप हैं कि हम विधायिका और कार्यपालिका की शक्तियों का अतिक्रमण कर रहे हैं।”
केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार इसे वाद-प्रतिवाद के रूप में नहीं लेगी।
उन्होंने कहा, “कृपया यहां इस पर गौर करें। हम कुछ ऐसा लेकर आएंगे, जो अभिव्यक्ति की आजादी को संतुलित करेगा और जिसमें (अनुच्छेद) 19 (2) का भी ध्यान रखा जाएगा।”
मेहता ने कहा कि कुछ सामग्री न केवल अश्लील, बल्कि “विकृत” भी थीं। उन्होंने कहा कि इस संबंध में कुछ नियमन अस्तित्व में हैं, जबकि कुछ अन्य पर विचार किया जा रहा है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन ने कहा कि यह कोई वाद-प्रतिवाद नहीं है और याचिका में सोशल मीडिया और ओवर-द-टॉप (ओटीटी) मंचों पर ऐसी सामग्री के प्रसारण पर गंभीर चिंता जताई गई है।
जैन ने कहा कि ऐसी सामग्री बिना किसी जांच या प्रतिबंध के प्रदर्शित की जाती हैं।
न्यायमूर्ति गवई ने मेहता से कहा, “श्रीमान सॉलिसिटर, आपको कुछ करना चाहिए।”
मेहता ने कहा कि अब बच्चों का इस तरह की सामग्री से अधिक पाला पड़ रहा है।
उन्होंने कहा, “नियमित कार्यक्रमों में दिखाई जाने वाली कुछ चीजें, फिर चाहे वह भाषा हो या विषय-वस्तु... न केवल अश्लील, बल्कि विकृत भी होती हैं।”
मेहता ने कहा कि कुछ कार्यक्रम तो इतने विकृत होते हैं कि दो सम्मानित पुरुष भी एक साथ बैठकर नहीं देख सकते। उन्होंने कहा कि एकमात्र शर्त यह है कि ऐसे कार्यक्रम 18 साल से अधिक उम्र के दर्शकों के लिए हैं, लेकिन इन्हें नियंत्रित नहीं किया जा सकता।
पीठ ने बच्चों के स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने का जिक्र किया।
मेहता ने कहा, “वे (बच्चे) इस्तेमाल में माहिर हैं। यह अच्छी बात है, बशर्ते वे सही वेबसाइट पर जाएं।”
पीठ ने कहा, “हमने उनसे (जैन से) पिछली तारीख पर ही कहा था कि इस मुद्दे से निपटने का काम या तो विधायिका का है या कार्यपालिका का।”
पीठ का इशारा साफ तौर पर न्यायपालिका के खिलाफ उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सांसद निशिकांत दुबे की टिप्पणियों की तरफ था।
धनखड़ ने न्यायपालिका पर राष्ट्रपति के लिए फैसले लेने की समयसीमा निर्धारित करने को लेकर सवाल उठाया था। उन्होंने न्यायपालिका पर ‘सुपर संसद’ के रूप में काम करने का आरोप लगाते हुए कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय लोकतांत्रिक ताकतों पर ‘परमाणु मिसाइल’ नहीं दाग सकता।
वहीं, दुबे ने कहा था कि अगर उच्चतम न्यायालय को ही कानून बनाना है, तो संसद और विधानसभाओं को बंद कर देना चाहिए।
मेहता ने सोमवार को कहा कि इस मुद्दे से निपटने के लिए कुछ करने की जरूरत है।
जब पीठ ने केंद्र और कुछ सोशल मीडिया एवं ओटीटी मंचों सहित अन्य को नोटिस जारी करने की पेशकश की, तो मेहता ने कहा कि इसकी जरूरत नहीं है।
हालांकि, न्यायमूर्ति गवई ने कहा, “उन्हें अदालत के समक्ष आने दीजिए, क्योंकि उनके भी कुछ सामाजिक दायित्व हैं।”
पीठ ने अपने आदेश में कहा, “मौजूदा याचिका सोशल मीडिया और ओटीटी मंचों पर विभिन्न आपत्तिजनक, अश्लील और अभद्र सामग्री के प्रसारण के सिलसिले में एक बड़ी चिंता को उठाती है।”
पीठ ने पांच याचिकाकर्ताओं की ओर से दाखिल याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश पारित किया। इस याचिका में सोशल मीडिया और ओटीटी मंचों पर अश्लील सामग्री का प्रसारण रोकने के लिए राष्ट्रीय सामग्री नियंत्रण प्राधिकरण के गठन का निर्देश दिए जाने का भी अनुरोध किया गया है।
याचिका में दावा किया गया है कि सोशल मीडिया साइट पर ऐसे पेज और प्रोफाइल उपलब्ध हैं, जो बिना किसी काट-छांट के अश्लील सामग्री प्रसारित कर रहे हैं और विभिन्न ओटीटी मंचों पर ऐसी सामग्री दिखाई जा रही है, जिसमें बाल पोर्नोग्राफी के संभावित तत्व मौजूद हैं।
भाषा पारुल