भाजपा ने 1952 में आंबेडकर की चुनावी हार का ठीकरा कांग्रेस पर फोड़ा, कर्नाटक विधानसभा में हंगामा
प्रशांत
- 17 Mar 2025, 09:08 PM
- Updated: 09:08 PM
बेंगलुरु, 17 मार्च (भाषा) कर्नाटक विधानसभा में सोमवार को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों द्वारा 1952 के लोकसभा चुनाव में बी.आर. आंबेडकर की हार के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराये जाने तथा जवाब में मंत्री प्रियंक खरगे द्वारा उनकी (आंबेडकर की) चुनावी पराजय का ठीकरा हिंदुत्व विचारक वी.डी. सावरकर पर फोड़ने के साथ ही सदन में हो-हंगामा हुआ।
खरगे ने भाजपा को चुनौती देते हुए कहा कि वह साबित कर सकते हैं कि आंबेडकर की हार के लिए सावरकर जिम्मेदार थे और इसके लिए उन्होंने संविधान निर्माता के हस्तलिखित पत्र को सबूत के तौर पर पेश किया। इस पर भाजपा विधायक बसनगौड़ा पाटिल यतनाल ने कहा कि वह चुनौती स्वीकार करते हैं और इस मुद्दे पर चर्चा हो जाए।
इसके बाद अध्यक्ष यू.टी. खादर ने कहा कि वह इस विषय पर चर्चा के लिए शुक्रवार दोपहर का समय तय कर रहे हैं।
राज्यपाल के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर चर्चा का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने कहा कि यह कर्नाटक की कांग्रेस सरकार थी जिसने 2013 में अनुसूचित जाति उपयोजना और जनजातीय उपयोजना के संबंध में कानून बनाया था तथा पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश ऐसा करने वाला पहला राज्य था। उन्होंने कहा, ‘‘यह भाजपा शासित राज्यों द्वारा नहीं किया गया... केंद्र सरकार द्वारा नहीं किया गया।’’
इस पर विपक्ष के उपनेता अरविंद बेलाड ने पूछा कि कांग्रेस ने लंबे समय तक केंद्र और राज्य दोनों जगहों पर शासन किया, तो उसने ऐसा पहले क्यों नहीं किया?
उन्होंने सवाल किया, ‘‘क्या आप (कांग्रेस) सो रहे थे? हमें 1947 में आजादी मिली थी।’’
भाजपा विधायक वेदव्यास कामत ने पूछा, ‘‘संसदीय चुनाव में आंबेडकर को किसने हराया।’’
इस पर प्रियंक खरगे ने कहा कि सावरकर ने ही आंबेडकर को हराया था। उनके साथ कांग्रेस के कई विधायकों और मंत्रियों ने भी आरोप लगाया कि सावरकर ही इसके लिए जिम्मेदार थे।
खरगे ने कहा, ‘‘आंबेडकर ने एक पत्र लिखा था, उसे पढ़िए। उन्होंने उसमें सावरकर का जिक्र किया है।’’
इस पर भाजपा सदस्यों ने जवाब दिया कि यह कांग्रेस ही थी जिसने आंबेडकर की हार सुनिश्चित की।
सिद्धरमैया ने पलटकर सवाल किया, ‘‘ उन्हें (आंबेडकर को) मंत्री किसने बनाया।’’
बेल्लाड एवं अन्य भाजपा सदस्यों ने कहा, ‘‘आंबेडकर के खिलाफ अभियान किसने चलाया? (पंडित जवाहरलाल) नेहरू ने किया। उन्हें मंत्रिमंडल से किसने हटाया? उनके अंतिम संस्कार के लिए जगह किसने नहीं दी? कांग्रेस ने उन्हें भारत रत्न भी नहीं दिया।’’
इस विषय पर दोनों पक्षों के बीच तीखी बहस हुई।
विधानसभा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) तथा बजरंग दल के बारे में मुख्यमंत्री के बयान को लेकर भी हंगामा हुआ और दो बार सदन की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।
भाजपा विधायकों ने आपत्ति जताते हुए कहा कि मुख्यमंत्री अपनी सीमाएं लांघ रहे हैं और उन्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए।
उन्होंने कांग्रेस पर प्रतिबंधित संगठन ‘पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई)’ के खिलाफ मामले वापस लेने का आरोप लगाया।
सिद्धरमैया ने उनके आरोप को खारिज करते हुए कहा कि सरकार ने पीएफआई और ‘सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई)’ के खिलाफ मामले वापस नहीं लिए गए हैं।
विपक्ष के नेता आर. अशोक ने चेतावनी दी कि जब तक मुख्यमंत्री अपना बयान वापस नहीं ले लेते, तब तक भाजपा सदन नहीं चलने देगी।
हंगामे को देखते हुए सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई। कार्यवाही पुन: शुरू होने पर भी हंगामा जारी रहा।
अशोक ने जानना चाहा कि जब राज्यपाल थावरचंद गहलोत ने इस बारे में कुछ नहीं कहा तो मुख्यमंत्री ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुद्दा क्यों उठाया।
उन्होंने मांग की कि मुख्यमंत्री के बयान को कार्यवाही से हटाया जाए और उन्हें अपना बयान वापस लेना चाहिए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उन्होंने किसी भी असंसदीय शब्द का इस्तेमाल नहीं किया।
भाषा
राजकुमार