विदेश मंत्रालय के बजट में पर्याप्त वृद्धि की जरूरत: संसदीय समिति
वैभव माधव
- 17 Mar 2025, 05:56 PM
- Updated: 05:56 PM
नयी दिल्ली, 17 मार्च (भाषा) संसद की एक समिति ने कहा है कि विदेश मंत्रालय को मौजूदा बजट आवंटन भारत की विदेश नीति प्राथमिकताओं और अंतरराष्ट्रीय स्तर का ‘पर्याप्त समर्थन नहीं करता’ और इसमें पर्याप्त वृद्धि की जरूरत है ताकि भारत अपने कूटनीतिक और विकास उद्देश्यों को प्रभावी ढंग से पूरा कर सके और विश्व मंच पर अपने बढ़ते प्रभाव को बनाए रख सके।
समिति ने कहा कि बजट अनुमान (बीई) 2025-26 में 20,516.61 करोड़ रुपये के आवंटन में बीई 2024-25 से 7.39 प्रतिशत की कमी और 2024-25 के संशोधित अनुमान (आरई) की तुलना में 18.83 प्रतिशत की कमी आई है।
कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अध्यक्षता वाली समिति की ‘अनुदान मांगों (2025-26) पर विदेश मामलों की समिति (2024-25) की पांचवीं रिपोर्ट’ सोमवार को संसद में पेश की गई।
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, ‘‘वित्त वर्ष 2025-26 के लिए विदेश मंत्रालय के बजटीय आवंटन की विस्तृत जांच करने पर, समिति ने निराशापूर्ण तरीके से पाया कि भारत की बढ़ती वैश्विक छवि और विस्तारित कूटनीतिक एवं विकास जिम्मेदारियों के बावजूद, मंत्रालय का आवंटन भारत की बढ़ती वैश्विक भूमिका की तुलना में अनुपातहीन रूप से कम है।’’
समिति ने कहा कि भारत का कूटनीतिक प्रभाव बढ़ रहा है और देश बहुपक्षीय जुड़ाव, क्षेत्रीय सुरक्षा, विकास साझेदारी और जलवायु परिवर्तन, साइबर सुरक्षा एवं वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसी उभरती चुनौतियों का जवाब देने सहित वैश्विक मामलों में तेजी से महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘हालांकि, भारत सरकार के कुल बजट के प्रतिशत के रूप में विदेश मंत्रालय का आवंटन वित्त वर्ष 2024-25 में 0.46 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2025-26 में 0.41 प्रतिशत हो गया है। विदेश मंत्रालय के हिस्से में यह कमी, खासकर भारत की अंतरराष्ट्रीय पहुंच और जिम्मेदारियों के व्यापक दायरे को देखते हुए चिंताजनक है।’’
समिति ने कहा कि मंत्रालय ने अपने साधनों के भीतर काम किया है, तथा अपने अंतरराष्ट्रीय दायित्वों को पूरा करने में सफल रहा है, लेकिन यह स्वीकार किया जाना चाहिए कि वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका लगातार बढ़ रही है, तथा कूटनीतिक जुड़ाव, सुरक्षा संबंधी चिंताएं और विकास प्रतिबद्धताएं जटिल होती जा रही हैं, जिनके लिए ‘अधिक मजबूत वित्तीय सहायता की आवश्यकता है’।
भाषा वैभव