विस्फोट के दोषी की अलग कोठरी में रखे जाने के खिलाफ याचिका खारिज
राखी नरेश
- 18 Feb 2025, 05:15 PM
- Updated: 05:15 PM
मुंबई, 18 फरवरी (भाषा) बंबई उच्च न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि वर्ष 2010 में पुणे जर्मन बेकरी विस्फोट मामले में दोषी हिमायत बेग को किसी "मनोवैज्ञानिक आघात" का खतरा नहीं है। बेग ने शिकायत की थी कि उसे महाराष्ट्र की नासिक केंद्रीय जेल में पिछले 12 वर्षों से एकांत कारावास में रखा गया है।
न्यायमूर्ति रेवती मोहिते डेरे और न्यायमूर्ति नीला गोखले की खंडपीठ ने कहा कि वे संतुष्ट है कि बेग एकान्त कारावास में नहीं था और इसलिए न्यायालय ने उसे कोई भी राहत देने से इनकार कर दिया।
बेग जर्मन बेकरी विस्फोट मामले में दोषी ठहराया गया एकमात्र व्यक्ति था। फरवरी 2010 में पुणे स्थित इस लोकप्रिय रेस्टोरेंट में हुए विस्फोट में 17 लोगों की मौत हो गई थी और 60 अन्य घायल हुए थे।
बेग ने पिछले साल दायर याचिका में दावा किया था कि उसे पिछले बारह वर्षों से नासिक केंद्रीय जेल के 'अंडा सेल’ में एकांत कारावास में रखा गया है जिसके कारण उसकी मानसिक सेहत प्रभावित हो रही है। बेग ने उसे एकांत कारावास से बाहर स्थानांतरित किए जाने की अपील की थी।
अदालत ने कहा, "वर्तमान स्थिति में याचिकाकर्ता (बेग) द्वारा किए गए दावे के अनुसार किसी मनोवैज्ञानिक आघात की स्थिति नहीं है।"
पीठ ने राज्य जेल विभाग द्वारा जारी 2012 के एक परिपत्र का हवाला दिया जिसमें उच्च सुरक्षा जोखिम वाले कैदियों को उच्च सुरक्षा बैरक में रखा जाना अनिवार्य बताया गया है।
पीठ ने कहा, ''हम इस बात से संतुष्ट हैं कि याचिकाकर्ता एकांत कारावास में नहीं था और इसलिए हमें जेल अधिकारियों को याचिकाकर्ता को अन्य कैदियों के साथ एक सामान्य बैरक में स्थानांतरित करने का निर्देश देने का कोई कारण नहीं दिखता है।''
जेल प्रशासन द्वारा बेग को कोई कार्य सौंपने के अनुरोध पर अदालत ने कहा कि बेग को जेल नियमों और विनियमों के अनुसार कार्य सौंपा जाएगा।
महाराष्ट्र सरकार ने इससे पहले उच्च अदालत को बताया था कि राज्य की किसी भी जेल में एकांत कारावास की व्यवस्था नहीं है।
जेल अधिकारियों के अनुसार, विस्फोट जैसे जघन्य अपराधों में दोषी ठहराए गए व्यक्तियों को अन्य कैदियों से अलग रखा जाता है।
जेल अधिकारियों ने कहा कि बेग को एकान्त कारावास में नहीं रखा गया था और बैरक को उसके गोल आकार के कारण 'अंडा सेल' कहा जाता है।
अधिकारियों ने कहा कि बैरक में रोशनी और हवा के लिए पर्याप्त व्यवस्था है और कैदियों के चलने और व्यायाम करने के लिए एक लंबा गलियारा भी है। अधिकारियों ने कहा कि उसी बैरक में कई अन्य कैदी भी बंद हैं और वे सभी एक-दूसरे के साथ बातचीत करते हैं।
पुणे की एक विशेष अदालत ने वर्ष 2013 में बेग को गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और भारतीय दंड संहिता (आइपीसी) के तहत दोषी करार देते हुए उसे मौत की सजा सुनाई थी।
उच्च अदालत ने वर्ष 2016 में उसकी मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया और यूएपीए के तहत लगे आरोपों से बरी कर दिया।
इस मामले में छह अन्य लोगों के खिलाफ भी आरोपपत्र दायर किया गया है।
भाषा
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