“मां, जीवन का मतलब क्या है?”, बच्चे के इस सवाल का जवाब कैसे दें
(द कन्वरसेशन) पारुल वैभव
- 17 Feb 2025, 05:21 PM
- Updated: 05:21 PM
(बेन किल्बी, शिक्षा में पीएचडी उम्मीदवार, मोनैश विश्वविद्यालय)
सिडनी, 17 फरवरी (द कन्वरसेशन) अगर आपका बच्चा आपसे पूछे कि “मां, जीवन का मतलब क्या है?”, तो आप हंसकर टाल देंगी या फिर सोच में पड़ जाएंगी कि क्या कहूं और कहां से शुरू करूं।
ऐसे सवालों को बच्चों के लिए बहुत ज्यादा जटिल मानकर इन्हें टाल देना आम बात है। प्लेटो और अरस्तू जैसे महान दार्शनिकों का भी मानना था कि बच्चों का मन दर्शनशास्त्र को समझने के लिए तैयार नहीं होता। उन्हें लगता था कि व्यक्ति 30 साल की उम्र में पहुंचने के बाद ही दर्शनशास्त्र जैसे गहरे विषय को समझने की क्षमता हासिल कर पाता है।
लेकिन, बच्चे इसके विपरीत जानते हैं। वे बड़े-बड़े सवाल पूछते हैं, मसलन-“हम यहां क्यों आए हैं?”, “निष्पक्ष होने का क्या मतलब है?” और “हम बिल्ली को खाना क्यों खिलाते रहते हैं, जबकि वह कभी भी शुक्रिया नहीं कहती?”
अमेरिकी शोधकर्ता और लेखिका जाना मोह्र लोन दो दशक से अधिक समय से छोटे बच्चों को दर्शनशास्त्र पढ़ा रही हैं। एक बार कक्षा दो में पढ़ने वाले एक बच्चे ने उनसे कहा था : “बच्चे दुनिया के बारे में ज्यादा कुछ नहीं जानते, इसलिए उनका दिमाग कल्पनाओं के आकाश में उड़ने के लिए अधिक स्वतंत्र होता है।”
यह खुलापन बच्चों को स्वाभाविक दार्शनिक बनाता है। बच्चों के साथ ऐसे दार्शनिक संवाद को प्रोत्साहित करके आप एक जिज्ञासु, विचारशील और चिंतनशील व्यक्ति बनने में उनकी मदद कर सकते हैं।
माता-पिता ऐसा कैसे कर सकते हैं?
-ज्यादातर लोग दर्शनशास्त्र से जुड़े संवाद में शामिल होने से इसलिए बचते हैं, क्योंकि वे इस बात से अनजान होते हैं कि यह कैसे काम करता है। लेकिन, आप इन तीन चरणों का पालन करके आसानी से दार्शनिक संवाद में हिस्सा ले सकते हैं :
1.चिंतन
2.सामान्यीकरण
3.अमूर्तीकरण
जब आपका बच्चा आपसे कोई जटिल सवाल पूछा, जैसे “जीवन का क्या मतलब है?”, तो आपके पास जवाब होना जरूरी नहीं है, आपको बस संवाद शुरू करने की आवश्यकता है।
सबसे पहले, अपने बच्चे को इस सवाल पर विचार करने के लिए प्रेरित करें। आप पूछ सकते हैं : “आप क्या सोचते हैं?” इससे आपके बच्चे को अपने अनुभवों को खंगालने का मौका मिलता है। वह कह सकता है, “मैं फुटबॉल और ब्लू (एनिमेशन सीरीज का लोकप्रिय किरदार) के लिए जीता हूं!”
इसके बाद सामान्यीकरण की ओर बढ़ें। आप पूछ सकते हैं, “क्या आपको लगता है कि सभी के लिए जीवन का यही अर्थ है?” इस सवाल से खुद से परे सोचने के लिए प्रेरित करने वाली दार्शनिक चर्चा शुरू होती है। जवाब में आपका बच्चा कह सकता है, “वैसे, स्टेला जिमनास्टिक और पनीर के लिए जीती है।”
अंत में अमूर्तीकरण पर जोर दें। बच्चे से पूछें, “कौन-सी चीजें सभी लोगों के लिए जीवन को सार्थक बनाती हैं?”, “फुटबॉल, ब्लू, जिमनास्टिक या पनीर सभी को आकर्षित नहीं करते, लेकिन कोई और चीज कर सकती है?”
इन सवालों के जरिये हम बच्चे को ऐसी चीजों के बारे में सोचने के लिए प्रेरित कर सकते हैं, जो सार्थक जीवन जीने के वास्ते सभी के लिए अहम हैं। जवाब में वे कह सकते हैं, “बहुत से लोगों को चॉकलेट बेहद पसंद है, लेकिन आंटी ग्रेस को नहीं। ज्यादातर लोगों को कुत्ते बहुत पसंद हैं, लेकिन शायद उन लोगों को नहीं, जिन्हें बिल्लियों से प्यार है। हर कोई अपने दोस्तों और परिजनों के साथ समय बिताना पसंद करता है।”
अचानक, आप एक सार्थक दार्शनिक संवाद में शामिल हो जाते हैं। आप आगे भी कई सवाल कर सकते हैं, जैसे-“प्यार का वास्तविक अर्थ क्या है?”, “कुछ रिश्ते अन्य संबंधों के मुकाबले अधिक महत्वपूर्ण क्यों होते हैं?”
यहां हम अवधारणाओं के माध्यम से संवाद कर रहे हैं, जिसे अकादमिक रूप से संकल्पनात्मक विश्लेषण कहा जाता है।
हमें ऐसा क्यों करना चाहिए?
-शैक्षणिक अनुसंधान में पाया गया है कि दार्शनिक संवाद से बच्चों की तर्कशक्ति, पढ़ने की आदत और गणित की समझ के साथ-साथ आत्म-सम्मान एवं बारी-बारी से कार्य करने की क्षमता में सुधार होता है।
विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि दार्शनिक संवाद बच्चों के शैक्षणिक और सामाजिक विकास को बढ़ावा देता है, यह बच्चों को उनके आसपास की दुनिया के साथ सार्थक रूप से जुड़ने में सक्षम बनाता है।
खुशी, पहचान, निष्पक्षता, मौत, वास्तविकता, समय, प्रकृति, अच्छाई, ज्ञान और उद्देश्य उन चीजों में शामिल हैं, जिनसे जुड़ी बातें बच्चों के सामने लगभग हर रोज आती हैं। अपने बच्चे को दर्शनशास्त्र समझाने का मतलब सिर्फ यहीं तक सीमित हो सकता है कि इन चीजों का क्या मतलब है और ये कैसे हमारे जीवन को प्रभावित करती हैं।
अवधारणाओं को समझना और उस समझ को जीवन में लागू करने में सक्षम होना दर्शनशास्त्र का आधार है।
अपने बच्चे से क्या सवाल करें?
-अपने बच्चे को दार्शनिक संवाद में शामिल करने के लिए उसके साथ उन अवधारणाओं के बारे में बातचीत शुरू करें, जिनसे उसका रोज सामना होता है।
अगर बच्चा कोई चित्र बना रहा हो, तो आप उससे पूछ सकते हैं कि कला क्या है? कल्पना क्या है?
अगर वह अपना पसंदीदा खिलौना साझा करने से कतराए, तो आप उससे पूछ सकते हैं कि निष्पक्षता क्या है? दयालुता का क्या अर्थ है?
अगर वह कुत्ते से बात करता हो, तो उससे सवाल करें कि भाषा क्या है? समझ क्या है?
अगर वह भावुक हों तो उससे पूछें कि खुशी क्या है? दुख क्या है?
अगर बच्चा यह जानना चाहे कि उसे स्कूल क्यों जाना चाहिए, तो उससे सवाल करें कि ज्ञान क्या है?
अगर वह आपको अपने सपने के बारे में बताए, तो उससे सवाल करें कि वास्तविकता क्या है?
अगली बार जब आपका बच्चा कोई जटिल सवाल पूछे, तो उस पल का लुत्फ उठाएं। निष्पक्षता, प्यार और खुशी जैसी अवधारणाओं की गहराई में उतरकर आप दुनिया को बेहतर ढंग से समझने और ज्यादा विचारशील व्यक्ति बनने में उनकी मदद कर सकते हैं।
(द कन्वरसेशन) पारुल