समान प्रावधानों को रद्द करने के बाद वही न्यायाधिकरण सुधार कानून कैसे लागू किया गया: न्यायालय
धीरज शोभना मनीषा वैभव
- 11 Nov 2025, 11:00 AM
- Updated: 11:00 AM
नयी दिल्ली, 11 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सवाल किया है कि केंद्र उसी न्यायाधिकरण सुधार कानून को कुछ मामूली सुधार के साथ कैसे ला सकता है जिसके कई प्रावधानों को उसने पहले ही रद्द कर दिया था।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ सोमवार को मद्रास बार एसोसिएशन द्वारा दायर याचिका सहित कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें न्यायाधिकरण सुधार (युक्तिकरण और सेवा शर्तें) अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है।
सरकार 2021 में अधिनियम लाई जिसमें फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण सहित कुछ अपीलीय न्यायाधिकरणों को समाप्त करने और विभिन्न न्यायाधिकरणों के न्यायिक एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति, कार्यकाल से संबंधित विभिन्न शर्तों में संशोधन किया गया।
अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटरमणी ने पीठ से कहा कि संसद को अपने अनुभव के आधार पर कानून बनाने से नहीं रोका गया है। इस पर पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मुद्दा यह है कि संसद उसी कानून (जिसे रद्द कर दिया गया था) को यहां-वहां कुछ मामूली बदलावों के साथ कैसे ला सकती है। आप उसी कानून को नहीं ला सकते।’’
पीठ ने कहा, ‘‘हम यह नहीं कह रहे हैं कि संसद कानून नहीं बना सकती। लेकिन मुद्दा यह है कि फैसले में उठाए गए मुद्दों पर विचार किए बिना उसी कानून को दोबारा नहीं बनाया जा सकता।’’
याचिकाओं में अधिनियम के प्रावधानों को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि वे न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत का उल्लंघन करते हैं।
अटॉर्नी जनरल ने इस कानून का बचाव करते हुए कहा कि यह सरकार के भीतर ‘‘विस्तृत विचार-विमर्श’ का परिणाम है, न कि ‘‘कल्पना की उपज’’। उन्होंने कहा, ‘‘संसद ने जवाबदेही, विश्वास और दक्षता के मुद्दों पर अपना ध्यान केंद्रित किया है।’’
वेंकटरमणी ने कहा कि 2021 का अधिनियम न्यायिक स्वतंत्रता और प्रशासनिक दक्षता के बीच संतुलन का प्रतिनिधित्व करता है, और संसद ने न्यायाधिकरणों को नियंत्रित करने वाले ढांचे पर कानून बनाने की अपनी शक्तियों का इस्तेमाल किया है।
शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा कि अधिनियम के तहत नियुक्तियों पर कार्यकारी नियंत्रण अधिकार क्षेत्र से बाहर नहीं है।
उन्होंने दलील दी, ‘‘नियुक्तियों में कार्यपालिका की भागीदारी होती है, लेकिन वीटो का अधिकार प्रधान न्यायाधीश के पास होता है।’’ उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ‘‘चयन और पुनर्नियुक्ति दोनों प्रक्रियाओं में न्यायिक सदस्यों का प्रभुत्व होता है।’’
पात्रता और पुनर्नियुक्ति मानदंडों पर चिंताओं पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि ‘‘केवल अनुभव ही एकमात्र या तर्कसंगत मानदंड नहीं बन सकता’’।
न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम, 2021 ने पहले के न्यायाधिकरण सुधार (युक्तिकरण और सेवा की शर्तें) अध्यादेश, 2021 का स्थान लिया, जिसे इसी तरह की संवैधानिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा था।
भाषा धीरज शोभना मनीषा